Thursday, June 11, 2020

लाल किताब के उपाय

जीवन की समस्याएं - लाल किताब का समाधान 



1.  आर्थिक समस्या के छुटकारे के लिए :
यदि आप हमेशा आर्थिक समस्या से परेशान हैं तो इसके लिए आप 21 शुक्रवार 9 वर्ष से कम आयु की 5 कन्यायों को खीर व मिश्री का प्रसाद बांटें !

2.  घर और कार्यस्थल में धन वर्षा के लिए :

इसके लिए आप अपने घर, दुकान या शोरूम में एक अलंकारिक फव्वारा रखें ! एक मछलीघर जिसमें 8 सुनहरी व एक काली मछ्ली हो रखें ! इसको उत्तर या उत्तरपूर्व की ओर रखें ! यदि कोई मछ्ली मर जाय तो उसको निकाल कर नई मछ्ली लाकर उसमें डाल दें !


3.  परेशानी से मुक्ति के लिए :

आज कल हर आदमी किसी न किसी कारण से परेशान है ! कारण कोई भी हो आप एक तांबे के पात्र में जल भर कर उसमें थोडा सा लाल चंदन मिला दें ! उस पात्र को सिरहाने रख कर रात को सो जांय ! प्रातः उस जल को तुलसी के पौधे पर चढा दें ! धीरे-धीरे परेशानी दूर होगी !


4.  कुंवारी कन्या के विवाह हेतु :

.       यदि कन्या की शादी में कोई रूकावट आ रही हो तो पूजा वाले 5 नारियल लें ! भगवान शिव की मूर्ती या फोटो के आगे रख कर ऊं श्रीं वर प्रदाय श्री नामःमंत्र का पांच माला जाप करें फिर वो पांचों नारियल शिव जी के मंदिर में चढा दें ! विवाह की बाधायें अपने आप दूर होती जांयगी !
.      प्रत्येक सोमवार को कन्या सुबह नहा-धोकर शिवलिंग पर ऊं सोमेश्वराय नमःका जाप करते हुए दूध मिले जल को चढाये और वहीं मंदिर में बैठ कर रूद्राक्ष की माला से इसी मंत्र का एक माला जप करे ! विवाह की सम्भावना शीघ्र बनती नज़र आयेगी


5.  व्यापार बढाने के लिए :

.       शुक्ल पक्ष में किसी भी दिन अपनी फैक्ट्री या दुकान के दरवाजे के दोनों तरफ बाहर की ओर थोडा सा गेहूं का आटा रख दें ! ध्यान रहे ऐसा करते हुए आपको कोई देखे नही !
.      पूजा घर में अभिमंत्रित श्र्री यंत्र रखें !
.      शुक्र्वार की रात को सवा किलो काले चने भिगो दें ! दूसरे दिन शनिवार को उन्हें सरसों के तेल में बना लें ! उसके तीन हिस्से कर लें ! उसमें से एक हिस्सा घोडे या भैंसे को खिला दें ! दूसरा हिस्सा कुष्ठ रोगी को दे दें और तीसरा हिस्सा अपने सिर से घडी की सूई से उल्टे तरफ तीन बार वार कर किसी चौराहे पर रख दें ! यह प्रयोग 40 दिन तक करें ! कारोबार में लाभ होगा !


6.   लगातार बुखार आने पर :

.       यदि किसी को लगातार बुखार आ रहा हो और कोई भी दवा असर न कर रही हो तो आक की जड लेकर उसे किसी कपडे में कस कर बांध लें ! फिर उस कपडे को रोगी के कान से बांध दें ! बुखार उतर जायगा !
.      इतवार या गुरूवार को चीनी, दूध, चावल और पेठा (कद्दू-पेठा, सब्जी बनाने वाला) अपनी इच्छा अनुसार लें और उसको रोगी के सिर पर से वार कर किसी भी धार्मिक स्थान पर, जहां पर लंगर बनता हो, दान कर दें !
.      यदि किसी को टायफाईड हो गया हो तो उसे प्रतिदिन एक नारियल पानी पिलायें ! कुछ ही दिनों में आराम हो जायगा !


7.   नौकरी जाने का खतरा हो या ट्रांसफर रूकवाने के लिए :

पांच ग्राम डली वाला सुरमा लें ! उसे किसी वीरान जगह पर गाड दें ! ख्याल रहे कि जिस औजार से आपने जमीन खोदी है उस औजार को वापिस न लायें ! उसे वहीं फेंक दें दूसरी बात जो ध्यान रखने वाली है वो यह है कि सुरमा डली वाला हो और एक ही डली लगभग 5 ग्राम की हो ! एक से ज्यादा डलियां नहीं होनी चाहिए !


8.  कारोबार में नुकसान हो रहा हो या कार्यक्षेत्र में झगडा हो रहा हो तो :

यदि उपरोक्त स्थिति का सामना हो तो आप अपने वज़न के बराबर कच्चा कोयला लेकर जल प्रवाह कर दें ! अवश्य लाभ होगा !


9.  मुकदमें में विजय पाने के लिए :

यदि आपका किसी के साथ मुकदमा चल रहा हो और आप उसमें विजय पाना चाहते हैं तो थोडे से चावल लेकर कोर्ट/कचहरी में जांय और उन चावलों को कचहरी में कहीं पर फेंक दें ! जिस कमरे में आपका मुकदमा चल रहा हो उसके बाहर फेंकें तो ज्यादा अच्छा है ! परंतु याद रहे आपको चावल ले जाते या कोर्ट में फेंकते समय कोई देखे नहीं वरना लाभ नहीं होगा ! यह उपाय आपको बिना किसी को पता लगे करना होगा !


10.  धन के ठहराव के लिए :

आप जो भी धन मेहनत से कमाते हैं उससे ज्यादा खर्च हो रहा हो अर्थात घर में धन का ठहराव न हो तो ध्यान रखें को आपके घर में कोई नल लीक न करता हो ! अर्थात पानी टपटप टपकता न हो ! और आग पर रखा दूध या चाय उबलनी नहीं चाहिये ! वरना आमदनी से ज्यादा खर्च होने की सम्भावना रह्ती है !


11.  मानसिक परेशानी दूर करने के लिए :

रोज़ हनुमान जी का पूजन करे व हनुमान चालीसा का पाठ करें ! प्रत्येक शनिवार को शनि को तेल चढायें ! अपनी पहनी हुई एक जोडी चप्पल किसी गरीब को एक बार दान करें !


12.  बच्चे के उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु के लिए :

.       एक काला रेशमी डोरा लें ! ऊं नमोः भगवते वासुदेवाय नमःका जाप करते हुए उस डोरे में थोडी थोडी दूरी पर सात गांठें लगायें ! उस डोरे को बच्चे के गले या कमर में बांध दें !
.      प्रत्येक मंगलवार को बच्चे के सिर पर से कच्चा दूध 11 बार वार कर किसी जंगली कुत्ते को शाम के समय पिला दें ! बच्चा दीर्घायु होगा !


13.  किसी रोग से ग्रसित होने पर :

सोते समय अपना सिरहाना पूर्व की ओर रखें ! अपने सोने के कमरे में एक कटोरी में सेंधा नमक के कुछ टुकडे रखें ! सेहत ठीक रहेगी !


14.   प्रेम विवाह में सफल होने के लिए :

यदि आपको प्रेम विवाह में अडचने आ रही हैं तो :
शुक्ल पक्ष के गुरूवार से शुरू करके विष्णु और लक्ष्मी मां की मूर्ती या फोटो के आगे ऊं लक्ष्मी नारायणाय नमःमंत्र का रोज़ तीन माला जाप स्फटिक माला पर करें ! इसे शुक्ल पक्ष के गुरूवार से ही शुरू करें ! तीन महीने तक हर गुरूवार को मंदिर में प्रशाद चढांए और विवाह की सफलता के लिए प्रार्थना करें !


15.  नौकर न टिके या परेशान करे तो :

हर मंगलवार को बदाना (मीठी बूंदी) का प्रशाद लेकर मंदिर में चढा कर लडकियों में बांट दें ! ऐसा आप चार मंगलवार करें !


16.  बनता काम बिगडता हो, लाभ न हो रहा हो या कोई भी परेशानी हो तो :

हर मंगलवार को हनुमान जी के चरणों में बदाना (मीठी बूंदी) चढा कर उसी प्रशाद को मंदिर के बाहर गरीबों में बांट दें !


17.  यदि आपको सही नौकरी मिलने में दिक्कत आ रही हो तो :

.       कुएं में दूध डालें! उस कुएं में पानी होना चहिए !
.      काला कम्बल किसी गरीब को दान दें !
.      6 मुखी रूद्राक्ष की माला 108 मनकों वाली माला धारण करें जिसमें हर मनके के बाद चांदी के टुकडे पिरोये हों !


18.  अगर आपका प्रमोशन नहीं हो रहा तो :

.       गुरूवार को किसी मंदिर में पीली वस्तुये जैसे खाद्य पदार्थ, फल, कपडे इत्यादि का दान करें !
.      हर सुबह नंगे पैर घास पर चलें !


19.  यदि आपको धन की परेशानी है, नौकरी मे दिक्कत आ रही है, प्रमोशन नहीं हो रहा है या आप अच्छे करियर की तलाश में है तो यह उपाय कीजिए :

किसी दुकान में जाकर किसी भी शुक्रवार को कोई भी एक स्टील का ताला खरीद लीजिए ! लेकिन ताला खरीदते वक्त न तो उस ताले को आप खुद खोलें और न ही दुकानदार को खोलने दें ताले को जांचने के लिए भी न खोलें ! उसी तरह से डिब्बी में बन्द का बन्द ताला दुकान से खरीद लें ! इस ताले को आप शुक्रवार की रात अपने सोने के कमरे में रख दें ! शनिवार सुबह उठकर नहा-धो कर ताले को बिना खोले किसी मन्दिर, गुरुद्वारे या किसी भी धार्मिक स्थान पर रख दें ! जब भी कोई उस ताले को खोलेगा आपकी किस्मत का ताला खुल जायगा !


20. यदि आप अपना मकान, दुकान या कोई अन्य प्रापर्टी बेचना चाहते हैं और वो बिक न रही हो तो यह उपाय करें :

बाजार से 86 (छियासी) साबुत बादाम (छिलके सहित) ले आईए ! सुबह नहा-धो कर, बिना कुछ खाये, दो बादाम लेकर मन्दिर जाईए ! दोनो बादाम मन्दिर में शिव-लिंग या शिव जी के आगे रख दीजिए ! हाथ जोड कर भगवान से प्रापर्टी को बेचने की प्रार्थना कीजिए और उन दो बादामों में से एक बादाम वापिस ले आईए ! उस बादाम को लाकर घर में कहीं अलग रख दीजिए ! ऐसा आपको 43 दिन तक लगातार करना है ! रोज़ दो बादाम लेजाकर एक वापिस लाना है ! 43 दिन के बाद जो बादाम आपने घर में इकट्ठा किए हैं उन्हें जल-प्रवाह (बहते जल, नदी आदि में) कर दें ! आपका मनोरथ अवश्य पूरा होगा ! यदि 43 दिन से पहले ही आपका सौदा हो जाय तो भी उपाय को अधूरा नही छोडना चाहिए ! पूरा उपाय करके 43 बादाम जल-प्रवाह करने चाहिए ! अन्यथा कार्य में रूकावट आ सकती है !


21. यदि आप ब्लड प्रेशर या डिप्रेशन से परेशान हैं तो :

इतवार की रात को सोते समय अपने सिरहाने की तरफ 325 ग्राम दूध रख कर सोंए ! सोमवार को सुबह उठ कर सबसे पहले इस दूध को किसी कीकर या पीपल के पेड को अर्पित कर दें ! यह उपाय 5 इतवार तक लगातार करें ! लाभ होगा !


22. माईग्रेन या आधा सीसी का दर्द का उपाय :

सुबह सूरज उगने के समय एक गुड का डला लेकर किसी चौराहे पर जाकर दक्षिण की ओर मुंह करके खडे हो जांय ! गुड को अपने दांतों से दो हिस्सों में काट दीजिए ! गुड के दोनो हिस्सों को वहीं चौराहे पर फेंक दें और वापिस आ जांय ! यह उपाय किसी भी मंगलवार से शुरू करें तथा 5 मंगलवार लगातार करें ! लेकिन….लेकिन ध्यान रहे यह उपाय करते समय आप किसी से भी बात न करें और न ही कोई आपको पुकारे न ही आप से कोई बात करे ! अवश्य लाभ होगा !


23. फंसा हुआ धन वापिस लेने के लिए :

यदि आपकी रकम कहीं फंस गई है और पैसे वापिस नहीं मिल रहे तो आप रोज़ सुबह नहाने के पश्चात सूरज को जल अर्पण करें ! उस जल में 11 बीज लाल मिर्च के डाल दें तथा सूर्य भगवान से पैसे वापिसी की प्रार्थना करें ! इसके साथ ही ओम आदित्याय नमः का जाप करें !



नोट :

1. लाल किताब के सभी उपाय दिन में ही करने चाहिए ! अर्थात सूरज उगने के बाद व सूरज डूबने से पहले !
2. सच्चाई व शुद्ध भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए !
3. किसी भी उपाय के बीच मांस, मदिरा, झूठे वचन, परस्त्री गमन की विशेष मनाही है !
4. सभी उपाय पूरे विश्वास व श्रद्धा से करें, लाभ अवश्य होगा !
5. एक दिन में एक ही उपाय करना चाहिए ! यदि एक से ज्यादा उपाय करने हों तो छोटा उपाय पहले करें !    एक उपाय के दौरान दूसरे उपाय का कोई सामान भी घर में न रखें !
6. जो भी उपाय शुरू करें तो उसे पूरा अवश्य करें
अधूरा न छोडें 


अशुभ ग्रहों की शांति हेतु सरल स्नान

ग्रहों के दुष्परिणाम कम करने हेतु , कैसे और किस वस्तु से करें स्न्नान ?


हमारे दैनिक जीवन में नहाने का बड़ा महत्व है।
जैसे ही हम नहाते वैसे ही हमारे अंदर एक अद्धभुत प्रकार की ऊर्जा का संचार हमारे शरीर में होने लगता है इसलिए हमारे महान् ऋषि मुनियों ने  औषधि स्न्नान द्वारा हमारे कष्टों के निवारण की भी बात की है l 
जिनके मध्यम से हमारे शरीर में पढ़ने वाले ग्रहों, नक्षत्रों अशुभ एवं शुभ प्रभाव को हम कैस नियंत्रित करे सके। इसी कड़ी में प्रत्येक वार में नहाने की पद्धति के बारे में मैनें नीचे बताने का प्रयास किया है। 

1.  सोमवार -
इस दिन प्रातः काल के समय नहाने के पानी में दही डालकर नहाने से चंद्रमा ग्रह से संबधित अषुभ प्रभाव बहुत ही तेज गति से कम होेने लगते है। और शुभ प्रभाव धीरे - धीरे बढ़ने लगते है।

2.  मंगलवार:
इस दिन प्रातः काल के समय नहाने के पानी में पीसी हुई मंसूर दाल को डालकर नहाने से मंगल ग्रह से संबधित अषुभ प्रभाव बहुत ही तेज गति से कम होने लगते है और शुभ प्रभाव धीरे - धीरे बढ़ने लगते है।

3.   बुधवार:
इस दिन प्रातः काल के समय नहाने के पानी में हरी दूबी या दूर्वा घास की रस को डालकर नहाने से बुध ग्रह से संबधित अषुभ प्रभाव बहुत ही तेज गति से कम होने लगते है और शुभ प्रभाव धीरे - धीरे बढ़ने लगते है।

4.   गुरूवार:
इस दिन प्रातः काल के समय नहाने के पानी में पीली हल्दी या पीला सरसों को डालकर नहाने से गुरू ग्रह से संबधित अषुभ प्रभाव बहुत ही तेज गति से कम होने लगते है और शुभ प्रभाव धीरे - धीरे बढ़ने लगते है।

5.   शुक्रवार:
इस दिन प्रातः काल के समय नहाने के पानी में पीली हल्दी, दही और दूध को एक साथ डालकर नहाने से शुक्र ग्रह से संबधित अषुभ प्रभाव बहुत ही तेज गति से कम होने लगते है और शुभ प्रभाव धीरे - धीरे बढ़ने लगते है।

6.   शनिवार:
 इस दिन प्रातः काल के समय नहाने के पानी में काली हल्दी या काला तिल को पीस कर नहाने से शनि ग्रह से संबधित अषुभ प्रभाव बहुत ही तेज गति से कम होने लगते है और शुभ प्रभाव धीरे - धीरे बढ़ने लगते है।

7.   रविवार
: इस दिन प्रातः काल के समय नहाने के पानी में बेल के पत्ते को पीस कर नहाने से रविवार ग्रह से संबधित अशुभ प्रभाव बहुत ही तेज गति से कम होने लगते है और शुभ प्रभाव धीरे - धीरे बढ़ने लगते है।



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Tuesday, May 26, 2020

मुहूर्त के सामान्य प्रचलित नियम


 मुहूर्त के सामान्य प्रचलित नियम

- आचार्य अनुपम जौली 

वैदिक ज्योतिष में वार तथा तिथि के संयोग से बनने वाले मुहूर्तों को रोजमर्रा के काम-काज करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। इन्हें कोई भी व्यक्ति स्वयं ही देख सकता है और इसके लिए किसी ज्योतिषी के पास जाने की भी जरूरत नहीं होती है। तिथि तथा वार के संयोग से कई प्रकार के शुभ-अशुभ योग बनते हैं। इनकी विवेचना इस प्रकार हैं।

सिद्धि योग
विशेष वार तथा विशेष तिथियों के संयोग से बनने वाले योग को ही सिद्धि योग कहते हैं। ये निम्न पांच प्रकार के होते हैं-

(1) मंगलवार को जया तिथि (तृतीया, अष्टमी अथवा त्रयोदशी) आए।
(2) बुधवार को भद्रा तिथि (द्वितीया, सप्तमी अथवा द्वादशी) आए।
(3) गुरुवार को पूर्णा तिथि (पंचमी, दशमी अथवा पूर्णिमा) आए।
(4) शुक्रवार को नन्दा तिथि (प्रतिपदा, षष्ठी अथवा एकादशी) आए।
(5) शनिवार को रिक्ता तिथि (चतुर्थी, नवमी या चतुर्दशी) आए।

रविवार तथा सोमवार को सिद्धि योग नहीं बनता है।

अधम योग
इस योग को किसी भी नवीन कार्य की शुरुआत हेतु अशुभ माना गया है।यह योग दो प्रकार से बन सकता है- (पहला) तिथि वार के संयोग से, (दूसरा) तथा वार एवं चन्द्र नक्षत्र के संयोग से बनता है। दोनों ही प्रकार से बनने वाले अधम योग की निंदा की गई है तथा उन्हें सभी प्रकार के शुभ कार्यों हेतु त्याज्य बताया गया है। वार तथा तिथि के संयोग से बनने वाला अधम योग निम्न स्थितियों में बनता है-

यदि रविवार को नन्दा तिथि हो, सोमवार को भद्रा तिथि हो, मंगलवार को नन्दा तिथि हो, बुधवार को जया तिथि हो, गुरुवार को रिक्ता तिथि हो, शुक्रवार को भद्रा तिथि हो तो अधम योग बनता है।

वार तथा चन्द्र नक्षत्र के संयोग से बनने वाला अधम योग निम्न प्रकार है-
रविवार को भरणी नक्षत्र पड़े, सोमवार को चित्रा नक्षत्र पड़े, मंगलवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र पड़े, बुधवार को धनिष्ठा नक्षत्र पड़े, गुरुवार को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र पड़े, शुक्रवार को ज्येष्ठा नक्षत्र पड़े तथा शनिवार को रेवती नक्षत्र पड़े तो भी अधम योग बनता है।

सर्वार्थसिद्धि योग
सर्वार्थसिद्धि योग वार तथा चन्द्र नक्षत्र के संयोग से बनता है। यह अत्यन्त ही शुभ माना जाता है। इस मुहूर्त में जो भी कार्य आरंभ किया जाए उसमें अवश्य ही सफलता मिलती है। यह निम्न संयोगों से बनता है-

() यदि सोमवार को श्रवण, रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य तथा अनुराधा नक्षत्र पड़ता हो।
() यदि मंगलवार को अश्विनी, उत्तराभाद्रपद, कृतिका तथा आश्लेषा नक्षत्र पड़ता हो।
() यदि बुधवार को रोहिणी, अनुराधा, हस्त, कृतिका और मृगशिरा नक्षत्र पड़ता हो।
() यदि गुरुवार को रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु और पुष्य नक्षत्र पड़ता हो।
() यदि शुक्रवार को रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु और श्रवण नक्षत्र पड़ता हो।
() यदि शनिवार को श्रवण, रोहिणी और स्वाती नक्षत्र पड़ता हो।
() यदि रविवार को हस्त, मूल, अश्विनी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र पड़ता हो।

अमृत सिद्धि योग
इस योग को सिद्धी योग तथा सर्वार्थसिद्धी योग की तुलना में अत्यन्त श्रेष्ठ माना जाता है। अमृत सिद्धि योग वार तथा चन्द्र नक्षत्र के निम्न प्रकार के संयोगों से बनता है-

() यदि रविवार को हस्त नक्षत्र रहा हो।
() यदि सोमवार को मृगशिरा नक्षत्र हो।
() यदि मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र हो।
() यदि गुरुवार को पुष्य नक्षत्र हो।
() यदि शुक्रवार को रेवती नक्षत्र रहा हो।
() यदि शनिवार को रोहिणी नक्षत्र आता हो।

यूं तो अमृत सिद्धी योग को समस्त मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माना गया है परन्तु इसमें भी कुछ अपवाद है। जैसे कि मंगलवार को आने वाले अमृतसिद्धि योग में नवीन गृह में प्रवेश नहीं करना चाहिए। गुरुवार को पुष्य नक्षत्र के संयोग से बनने वाले अमृतसिद्धी योग में विवाह तथा पाणिग्रहण संस्कार नहीं किया जाता। शनिवार को आने वाले अमृतसिद्धी योग में महत्वपूर्ण यात्रा आरंभ नहीं करनी चाहिए। सोमवार, बुधवार, शुक्रवार तथा रविवार को बनने वाले अमृतसिद्धि योग में समस्त प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

द्विपुुष्कर योग
तिथि, वार तथा चन्द्र नक्षत्र के संयोग से द्विपुुष्कर योग बनता है। यदि रविवार, मंगलवार या शनिवार को भद्रा तिथि (द्वितीया, सप्तमी अथवा द्वादशी) हो एवं साथ ही धनिष्ठा, चित्रा या मृगशिरा नक्षत्र हो तो द्विपुष्कर योग बनता है। इस योग में जो भी कार्य आरंभ किया जाता है, उसकी पुनरावृत्ति होती है। अतः इस योग में नए कारोबार का शुभारम्भ, सम्पत्ति का क्रय, धनोपार्जन के कार्य करने चाहिए। परन्तु इस योग में कोई भी अशुभ कार्य करने से बचना चाहिए, यथा किसी का दाह संस्कार, श्राद्ध आदि  अन्यथा परिवार में किसी अन्य परिजन की मृत्यु का योग बन जाता है। मृत्यु टालना व्यक्ति के वश में नहीं होता अतः शव के अंतिम संस्कार की क्रिया को द्विपुष्कर त्रिपुष्कर योग में करने से बचना चाहिए।

त्रिपुष्कर योग
द्विपुष्कर योग की ही भांति त्रिपुष्कर योग भी वार, तिथि तथा चन्द्र नक्षत्र के संयोग से बनता है। यदि भद्रा तिथि (द्वितीया, सप्तमी अथवा द्वादशी) रविवार, मंगलवार या शनिवार को हो और उसके साथ कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ या उत्तराभाद्रपद नक्षत्र हो तो त्रिपुष्कार योग बनता है। मान्यता है कि इस योग में जो भी कार्य किया जाता है, वह तीन बार होता है। अतः द्विपुष्कर योग की ही भांति इस योग में भी समस्त मांगलिक शुभ कार्य करने चाहिए परन्तु अशुभ कार्य यथा मृतक का दाहसंस्कार, श्राद्ध, पिंडदान आदि भूल कर भी नहीं करना चाहिए, अन्यथा पुनरावृत्ति होने का भय बना रहता है।

यह ध्यान रखने योग्य बात है कि द्विपुष्कर तथा त्रिपुष्कर योग केवल रविवार, मंगलवार या शनिवार का भद्रा तिथियों के साथ योग होने पर ही बनते हैं, केवल नक्षत्र परिवर्तन होने पर द्विपुष्कर अथवा त्रिपुष्कर योग बनता है।

अमृत योग
यह अमृत सिद्धि योग से भिन्न है तथा शुभ कार्यों में त्याज्य माना गया है। अमृत योग वार तथा तिथि के संयोग से बनता है। यदि रविवार तथा मंगलवार को नन्दा तिथि हो, सोमवार तथा शुक्रवार को भद्रा तिथि हो, बुधवार को जया तिथि हो, गुरुवार को रिक्ता तिथि हो, शनिवार को पूर्णा तिथि हो तो इस योग का निर्माण होता है।

यमघंट योग
यमघंट योग वार तथा चन्द्र नक्षत्र के संयोग से बनता है। यदि रविवार को मघा नक्षत्र हो, अथवा सोमवार को विशाखा नक्षत्र हो, अथवा मंगलवार को आर्द्रा नक्षत्र हो, या बुधवार को मूल नक्षत्र हो, अथवा गुरुवार को कृत्तिका नक्षत्र हो, अथवा शुक्रवार को रोहिणी नक्षत्र हो अथवा शनिवार को हस्त नक्षत्र आए तो यमघंट योग होता है। इस योग को अशुभ माना गया है तथा शास्त्रानुसार कोई भी शुभ कार्य इस योग में आरंभ नहीं करना चाहिए।

मृत्यु योग
मृत्यु योग वार तथा तिथि के संयोग से बनता है। यदि नन्दा तिथि (प्रतिपदा, षष्ठी या एकादशी) मंगलवार या रविवार को हो, अथवा भद्रा तिथि (द्वितीया, सप्तमी या द्वादशी) सोमवार या शुक्रवार को जाएं अथवा जया तिथि (तृतीया, अष्टमी या त्रयोदशी) बुधवार को आए, अथवा रिक्ता तिथि (चतुर्थी, नवमी या चतुर्दशी) गुरुवार को आए अथवा पूर्णा तिथि (पंचमी, दशमी, पूर्णिमा या अमावस्या) शनिवार को आए तो मृत्यु योग बनता है। इस समय किया जाने वाला कार्य निःसंदेह निष्फल होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।

दग्ध योग
दग्ध योग दो प्रकार से बनता है पहला वार तथा चन्द्र नक्षत्र के संयोग से, दूसरा तिथि तथा वार के संयोग से। वार तथा चन्द्र नक्षत्र के योग से बनने वाला दग्ध योग तभी माना जाता है जबकि रविवार को भरणी नक्षत्र हो, अथवा सोमवार को चित्रा नक्षत्र हो, अथवा मंगलवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र हो अथवा बुधवार को घनिष्ठा नक्षत्र हो, अथवा गुरुवार को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र हो, अथवा शुक्रवार को ज्येष्ठा नक्षत्र हो अथवा शनिवार को रेवती नक्षत्र हो।

वार तथा तिथि के संयोग से बनने वाला दग्ध योग तब बनता है जबकि यदि सोमवार को एकादशी हो, मंगलवार को पंचमी हो, बुधवार को तृतीया हो, गुरुवार को षष्ठी हो, शुक्रवार को अष्टमी हो, शनिवार को नवमी हो अथवा रविवार को द्वादशी हो। इस योग में भी शुभ कार्य करने की मनाही है परन्तु जो कार्य पहले से चला रहा है, उसे नियमित रूप से चालू रखने में कोई दिक्कत नहीं है।

हुताशन योग
वार तथा तिथि के योग से बनने वाला हुताशन योग भी नए कार्य आरंभ करने के लिए शुभ नहीं माना गया है परन्तु यदि अन्य प्रबल शुभ योग हो तो इस योग को टाला जा सकता है। इस योग के बनने के लिए आवश्यक है कि सोमवार को षष्ठी हो, अथवा मंगलवार को सप्तमी हो, अथवा बुधवार को अष्टमी हो, अथवा गुरुवार को नवमी हो, अथवा शुक्रवार को दशमी हो, अथवा शनिवार को एकादशी हो अथवा रविवार को द्वादशी हो। वार तथा तिथियों की निरन्तरता के चलते ऐसा भी संभव है कि पूरा सप्ताह ही हुताशन योग बना रहे यदि सोमवार को षष्ठी तिथि हो और उसके बाद द्वादशी तक किसी भी तिथि में घट-बढ़ नहीं हो रही हो।

विष योग
यह योग भी वार तथा ितथि के संयोग से बनता है। इस योग में भी कोई नया कार्य आरंभ नहीं करना चाहिए। यदि रविवार को चतुर्थी हो, या सोमवार को षष्ठी हो, या मंगलवार को सप्तमी हो, या बुधवार को द्वितीया हो, या गुरुवार को अष्टमी हो, या शुक्रवार को नवमी हो या शनिवार को सप्तमी हो तो विष योग बनता है।


निन्दित तिथियां
शून्य तिथियों के अतिरिक्त निन्दित तिथियों को भी शुभ कार्यों हेतु प्रशस्त नहीं माना गया है। यदि प्रतिपदा तिथि को उत्तराषाढ़ नक्षत्र हो, द्वितीया तिथि को अनुराधा नक्षत्र हो, तृतीया तिथि को तीनों उत्तरा नक्षत्रों में से कोई भी एक हो, पंचमी को मघा नक्षत्र हो, षष्ठी को रोहिणी नक्ष६ हो, सप्तमी को हस्त तथा मूल नक्षत्र हो, अष्टमी को पूर्वाभाद्रपद नक्ष६ हो, नवमी को कृतिका नक्षत्र हो, एकादशी को रोहिणी नक्षत्र हो, द्वादशी को आश्लेषा नक्षत्र हो अथवा त्रयोदशी को स्वाति या चित्रा नक्षत्र हो तो इन तिथियों को निन्दित तिथी की संज्ञा दी जाती है।

त्याज्य योग
ऐसे योग वार, तिथी तथा चन्द्र नक्षत्र तीनों के संयोग से बनते हैं। यदि रविवार को पंचमी तिथि तथा हस्त नक्षत्र हो, सोमवार को षष्ठी तिथि तथा मृगशिरा नक्षत्र हो, मंगलवार को सप्तमी तथा अश्विनी नक्षत्र हो, बुधवार को अष्टमी तथा अनुराधा नक्षत्र हो, गुरुवार को नवमी तथा पुष्य नक्षत्र हो तो इन योगों को सर्वथा त्याज्य योग कहा जाता है। इन दशाओं में कभी भी कोई भी नया कार्य आरंभ नहीं करना चाहिए।

कार्य विशेष में त्यागने योग्य वार तथा नक्षत्र
यदि गुरुवार को पुष्य नक्षत्र हो (जिसे गुरु पुष्य भी कहा जाता है) तो विवाह नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र हो तो गृह प्रवेश नहीं करना चाहिए। शनिवार को रोहिणी नक्षत्र होने पर कोई भी नई महत्वपूर्ण यात्रा आरंभ नहीं करनी चाहिए।

रवि योग
सूर्य तथा चन्द्र नक्षत्रों के संयोग से बनने वाला रवि योग दो प्रकार का होता है, (1) शुभ रवि योग तथा (2) अशुभ रवि योग।

शुभ रवि योग - सूर्य जिस भी नक्षत्र में हो, यदि उससे चन्द्र नक्षत्र तक गिनने पर , , १०, १३ अतवा २० संख्यक नक्षत्र आएं तो इसे शुभ रवि योग कहते हैं। ऐसा रवि योग समस्त दोषों का नाश करता है। 

अशुभ रवि योग - सूर्य जिस भी नक्षत्र में हो, उससे चन्द्र नक्षत्र तक गिनने पर यदि 5, 7, 8, 10, 14, 15, 18, 19, 21, 22, 23, 24, 25 संख्यक नक्षत्र आए तो अशुभ रवि योग होता है। इस योग में कोई भी शुभ कार्य आरंभ नहीं किया जाता परन्तु यदि उग्र तथा क्रूर कर्म करने के लिए अशुभ रवि योग सर्वोत्तम मुहूर्त माना जाता है।

वर्जित योग
वैदिक ज्योतिष में कुछ ऐसे योग बताए गए हैं जिन्हें हमेशा ही त्यागना चाहिए। यथा जन्म का नक्षत्र, जन्म की तिथि, व्यतिपात, भद्रा, अमावस्या, माता-पिता की मृत्यु की तिथि, तिथिक्षय, तिथि वृद्धि, क्षयमास, अधिमास को किसी भी शुभ कार्य में त्यागना चाहिए। इसके अतिरिक्त विषकुंभ तथा वज्रयोग के आरंभ की तीन घटी, परिघ योग का पूर्वार्द्ध, शूल योग के प्रारंभ की पांच घटी, गंड तथा अतिगंड योग के आरंभ की छह घटी तथा व्याघात योग के आरंभ की नौ घटी को त्यागकर ही मांगलिक कार्य आरंभ करना चाहिए।

रंध्र तिथि
शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, षष्ठी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी तथा चतुर्दशी को रन्ध्र तिथि की संज्ञा दी गई है। इन तिथियों के आरंभ होने से 8, 9, 14, 25, 10 तथा 5 घड़ियां समस्त शुभ कार्यों में त्यागने की आज्ञा दी गई है। तिथियों के शेष भाग में कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है।

राहुकाल
राहुकाल में किए गए कार्यों का परिणाम सदैव शून्य ही होता है। माना जाता है कि राहुकाल में आरंभ किया गया कार्य राहु का असर होने के कारण निष्फल जाता है। राहुकाल की अवधि दिन के आठवें भाग (अर्थात डेढ घंटा) होती है। इस समयकाल के दौरान समस्त शुभ कार्यों को त्याग देना चाहिए। राहुकाल का समय सोमवार को सुबह 07:30 से 09 बजे तक, मंगलवार को दोपहर 03:00 से 04:30 बजे तक,, बुधवार को दोपहर 12:00 से 01:30 बजे तक, गुरुवार को दोपहर 01:30 से 03:00 बजे तक, शुक्रवार को सुबह 10:30 बजे से 12 बजे तक, शनिवार को सुबह 09 बजे से 10:30 बजे तक तथा, रविवार को शाम 04:30 से 06 बजे तक होता है।

पंचक
पंचक योग का निर्माण चन्द्रमा तथा चन्द्र नक्षत्र (अथवा राशि) के संयोग से होता है। गोचर में जब चन्द्रमा कुंभ राशि से मीन राशि तक विचरता है तो इस समय काल को पंचक कहा जाता है। इस दौरान चंद्रमा पांच नक्षत्रों क्रमशः धनिष्ठा नक्षत्र का उत्तरार्ध, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र से गुजरता है। पंचक में किसी भी शुभ कार्य को करने की आज्ञा नहीं है। पंचक पांच प्रकार के होते हैं- रोग, राज, अग्नि, चोर तथा मृत्यु। पंचक किस वार से आरंभ हो रहे हैं, इसी आधार पर उनका नामकरण किया जाता है। रविवार से आरंभ होने वाले पंचक को रोग पंचक, सोमवार से आरंभ होने वाले पंचक को राज पंचक, मंगलवार से आरंभ होने वाले पंचक को अग्रि पंचक, शुक्रवार को आरंभ होने वाले पंचक को चोर पंचक तथा शनिवार को आरंभ होने वाले पंचक को मृत्यु पंचक कहा जाता है। इनमें राज पंचक में जमीन-जायदाद तथा सरकार से जुड़े कामकाज करना शुभ माना गया है।



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Acharya Anupam Jolly