Saturday, December 10, 2011

गायत्री मंत्र : Gayatri Mantra for various Devi Devtas

विभिन्न गायत्री मंत्र

मंत्र विज्ञानं में गायत्री माँ का स्थान सर्वोपरि है | माँ गायत्री के मूल मंत्र से ज्ञान, बुद्धि के विकास के साथ साथ बुरे कर्मो का भी निदान होता है | जब भी गायत्री माँ के मंत्र का जाप करे उससे पहले ऋषि विश्वामित्र, मुनि वशिष्ठ जी व ब्रह्मा जी का मानसिक ध्यान जरूर करना चाहिए | प्रस्तुत लेख में विभिन्न ग्रहों व देवी देवताओ की गायत्री मंत्र दिया गया है | अपनी आस्था व ग्रहों की दशा के अनुसार गायत्री मंत्र का चयन करके निष्ठा पूर्वक इसका कम से कम १०८ बार अर्थात एक माला का जाप जल के लोटे व अग्नि का दीपक जलाकर उसके सामने करे |


सूर्य गायत्री- "ॐ आदित्याय च विधमहे प्रभाकराय धीमहि, तन्नो सूर्य :प्रचोदयात "|

चन्द्र गायत्री- ॐ अमृतंग अन्गाये विधमहे कलारुपाय धीमहि,तन्नो सोम प्रचोदयात"|

मंगल गायत्री- "ॐ अंगारकाय विधमहे शक्तिहस्ताय धीमहि, तन्नो भोम :प्रचोदयात"|

बुध गायत्री- "ॐ सौम्यरुपाय विधमहे वानेशाय च धीमहि, तन्नो सौम्य प्रचोदयात"|

गुरु गायत्री- "ॐ अन्गिर्साय विधमहे दिव्यदेहाय धीमहि, जीव: प्रचोदयात "|

शुक्र गायत्री- "ॐ भ्र्गुजाय विधमहे दिव्यदेहाय, तन्नो शुक्र:प्रचोदयात"|

शनि गायत्री- "ॐ भग्भवाय विधमहे मृत्युरुपाय धीमहि, तन्नो सौरी:प्रचोदयात "|

राहू गायत्री- "ॐ शिरोरुपाय विधमहे अमृतेशाय धीमहि, तन्नो राहू:प्रचोदयात"|

केतु गायत्री- "ॐ पद्म्पुत्राय विधमहे अम्रितेसाय धीमहि तन्नो केतु: प्रचोदयात"|

ब्रम्हा गायत्री- "ॐ वेदात्मने च विधमहे हिरंगार्भाय तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात "|

विष्णु गायत्री- "ॐ नारायण विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात"|

शिव गायत्री- ॐ महादेवाय विधमहे, रुद्रमुर्तय धीमहि तन्नो शिव: प्रचोदयात "|

कृष्ण गायत्री- ॐ देव्किनन्दनाय विधमहे, वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात "|

राधा गायत्री- वृष भानु: जायै विधमहे, क्रिश्न्प्रियाय धीमहि तन्नो राधा :प्रचोदयात "|

लक्ष्मी गायत्री- ॐमहालाक्ष्मये विधमहे, विष्णु प्रियाय धीमहि तन्नो लक्ष्मी:प्रचोदयात|

तुलसी गायत्री- ॐ श्री तुल्स्ये विधमहे, विश्नुप्रियाय धीमहि तन्नो वृंदा:प्रचोदयात "|

इन्द्र गायत्री- ॐ सहस्त्र नेत्राए विधमहे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नो इन्द्र:प्रचोदयात "|

सरस्वती गायत्री- ॐ वाग देव्यै विधमहे काम राज्या धीमहि तन्नो सरस्वती :प्रचोदयात "|

दुर्गा गायत्री- ॐ गिरिजाये विधमहे, शिवप्रियाय धीमहि तन्नो दुर्गा :प्रचोदयात "|

हनुमान गायत्री- अन्जनिसुताय विधमहे वायु पुत्राय धीमहि, तन्नो मारुती :प्रचोदयात "|

पृथ्वी गायत्री- पृथ्वी देव्यै विधमहे सहस्र मूरतयै धीमहि तन्नो पृथ्वी :प्रचोदयात "|

राम गायत्री- दशारथाय विधमहे सीता वल्लभाय धीमहि तन्नो राम :प्रचोदयात "|

सीता गायत्री- ॐ जनक नंदिन्ये विधमहे भुमिजाय धीमहि तन्नो सीता :प्रचोदयात "|

यम् गायत्री- ॐ सुर्यपुत्राय विधमहे, महाकालाय धीमहि तन्नो यम् :प्रचोदयात "|

वरुण गायत्री- ॐ जल बिम्बाय विधमहे नील पुरु शाय धीमहि तन्नो वरुण :प्रचोदयात "|

नारायण गायत्री- ॐनारायण विधमहे, वासुदेवाय धीमहि तन्नो नारायण :प्रचोदयात "|

हयग्रीव गायत्री- वाणीश्वराय विधमहे, हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हयग्रीव :प्रचोदयात "|

हंसा गायत्री- परम्ह्न्साय विधमहे, महा हंसाय धीमहि तन्नो हंस: प्रचोदयात "|

Thursday, October 20, 2011

रमल प्रश्नावली


  
इस प्रश्नावली का तरीका है कि चंदन की लकड़ी का चौकोर पासा बनाकर उस पर १, , , ४ खुदवा लें। माँ कुष्मांडा का ध्यान कर अपने कार्य का चिंतन करते हुए तीन बार पासा छोड़ें। उसका जो अंक आये, उसी अंक पर फल देखें। यदि किसी के पास पासा नहीं हो तो, नीचे दी गई सारणी में अनामिका अंगुली रखकर उसका फल देखें।

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१११॰ आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
११२॰ आप जो निर्णय ले रहे हैं उस पर पुर्विचार कर लें।
११३॰ दौड़-धूप करके और कुछ व्यय करके गया धन प्राप्त होगा।
११४॰ विश्वास, धैर्य, बुद्धि और विवेक से सुख व आनन्द की प्राप्ति होगी।
१२१॰ अपने आचरण को सही दिशा में रखें, बुरे लोगों की संगति न करें।
१२२॰ शुभ समय शीघ्र आने वाला है। ईश्वर उपासना करें।
१२३॰ ठंडे दिमाग से सोचें, आपने विपत्तियों को स्वयं निमंत्रण दिया है। यदि सच है तो भविष्य में सबक लें व विवेकी बनें। संकट-नाशन-गणेश-स्तोत्रका पाठ करें।
१२४॰ संतोष से बड़ा कोई धन नहीं। परिस्थितियों को सुधारने का प्रयास करें।
१३१॰ जो कुछ प्रत्यक्ष है, वही सत्य है कल्पना व भावुकता में न बहें।
१३२॰ वर्तमान में जीने का अभ्यास करें। कल की चिंता छोड़ दें।
१३३॰ अटल आत्मविश्वास का फल मीठा होता है।
१३४॰ भाग्य का निर्माण आपके हाथ में है। सच्चाई और ईमानदारी का अवलम्बन न छोड़ें।
१४१॰ शुभ समय शीघ्र आपके दरवाजे पर है। ॐ गं गणपतये नमः का जप करें।
१४२॰ कर्म का फल है। पुण्य कार्य करें। रुद्राष्टक का पाठ करें।
१४३॰ निंदा, फरेब, कुसंगति से दूर रहकर न्यायप्रिय ढंग से जीवन जीयें, सफल होंगे।
१४४॰ प्रसन्नता के पीछे न दौड़ें। यदि कार्य श्रेष्ठ है तो धन-मान मिलेगा।
२११॰ सोच-समझकर कार्य करें वरना पछतावा होगा।
२१२॰ धन-सम्पत्ति मिलने का योग है। श्रीसूक्त का पाठ करें।
२१३॰ घर-परिवार में सुख-समृद्धि तथा जीवन में कोई शुभ कार्य होने वाले होंगे। सर्व मंगल मांगल्ये॰॰॰॰॰ का जप करें।
२१४॰ दिन-दोगुनी, रात-चौगुनी तरक्की होने वाली है। दीन-हीन की सेवा करें।
२२१॰ दिखावा, प्रदर्शनप्रियता, झूठी महत्त्वकांक्षा के फेर में न पड़ें, अहित होगा।
२२२॰ दीन-हीन वर्ग की सेवा करें। भाग्य स्वयं चल कर आयेगा।
२२३॰ दुर्गा-सप्तशती का पाठ करें, कार्य सिद्ध होगा।
२२४॰ धैर्य रखें, बुरा समय जाने वाला है। गजेन्द्र-मोक्ष का पाठ करें।
२३१॰ प्राण-प्रण से अपने कार्यों में लग जाओ, सफलता कदम चूमेगी। भगवान विष्णु के मन्दिर में ऊँचाई पर पीली ध्वजा लगायें।
२३२॰ मन को नियंत्रण में रखें, वरना मुश्किल पैदा होगी।
२३३॰ ईश्वर का नाम लें, विपत्ति टल जायेगी। कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतः क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।। का जप करें।
२३४॰ तुम्हारा मित्र या साथी वफादार है, विश्वास कीजिए।
२४१॰ फालतू मित्रों के पीछे पागल मत बनो, जो तुम्हारा होने का दम भरते हैं, वह समय आने पर नाश करेंगे।
२४२॰ निराशा का दूसरा नाम मृत्यु है। निराश होने की आवश्यकता नहीं। भाग्य वाम-मार्गी है।गणेश-सहस्त्रनाम का जप करें।
२४३॰ भाग्य परिवर्तन का समय आ गया है। शीघ्र समृद्धि मिलने वाली है।महा-लक्ष्मी-अष्टकका पाठ करें।
२४४॰ आप जिस कार्य में लगे हैं, उसे विवेक-बुद्धि से लें, उसमें पूर्ण सफल होंगे।
३११॰ भाग्य उदय का समय आ गया है, हर प्रयत्न सफल होंगे। श्रीमहा-लक्ष्मी की साधना करें।
३१२॰ लोग आपसे फायदा उठा रहे हैं। सावधान रहें।
३१३॰ संतप्त व्यक्ति या दुःखी प्राणी शीघ्र छुटकारा पा लेगा।
३१४॰ दुर्विचार को अपने मन से निकाल दें तो भाग्यशाली बने रहेंगे।
३२१॰ समय आने दीजिए, इंतजार करें, प्रचुर मात्रा में धन प्राप्त होगा।
३२२॰ नया काम न करं, समय ठीक नहीं है।
३२३॰ अपनी देखभाल करें।
३२४॰ आपका भाग्य उदय, अपने जन्म स्थान पर होगा। जन्म स्थान से दूर न जाएं।
३३१॰ आपके शत्रु आपका अहित करने का प्रयास करेंगे। हनुमान चालिसा का पाठ करें।
३३२॰ झूठ, मिथ्या संदेह को हृदय से निकाल दें तो कार्य शीघ्र सिद्ध होगा।
३३३॰ आप परिवर्तन चाहते हैं तो कीजिए, परिवर्तन के परिणाम सुखद व शुभ होंगे।
३३४॰ धुन के पक्के बने रहिये। अर्जुन के समान लक्ष्य निर्धारित करें। सफलता प्राप्त होगी।
३४१॰ शत्रुजन की परवाह न करें। घबराइए नहीं। सत्य की जीत होगी।
३४२॰ भौतिक वस्तुएं क्ष-भंगुर है, उस पर भूल कर भी स्वयं को न्यौछावर न करें।
३४३॰ कुआं खोदने वाले के लिए आप खाई खोदें, यह ठीक नहीं। जो भी क्लेश पहुंचा रहा है, उसे न मारें, न ही दुत्कारें। उसे उचित सलाह दें व न्याय पथ दिखलाएं।
३४४॰ अब आप ईश्वर की कृपा व सहायता के पात्र होंगे।
४११॰ धन-सम्पत्ति में वृद्धि होगी। आदर्श जीवन जीयेंगे।
४१२॰ व्यवहार में सौम्यता, सुघड़ता लायें, कार्य पूर्ण तभी होंगे।
४१३॰ व्यर्थ का जोखिम न उठायें।
४१४॰ निर्णय स्वयं लें, उत्तम होगा। आपका स्नेह अपनत्व क्या पात्रों के बनने योग्य है।
४२१॰ आश्वस्त रहें, आप समृद्धशाली होंगे।
४२२॰ जो हो चुका उसका क्या रोना, पुनः अपने कार्यों में जुट जाएं सफल होंगे।
४२३॰ आप सच में सौभाग्यशाली हैं, शुद्ध आचरण हमेशा रखें, सफल रहेंगे।
४२४॰ विपत्ति आने वाली है, “विष्णु-सहस्त्रनामका पाठ करें।
४३१॰ संतोष से बढ़कर कोई खजाना नहीं, उतावलेपन से दूर रहें।
४३२॰ समय सर्वथा अनुकूल व शुभ है। लाभ उठायें, श्रेष्ठ भविष्य की ओर बढ़ेंगे।
४३३॰ कुछ समय में समय अनुकूल होगा।
४३४॰ वक्त पर मित्र काम आयेंगे।
४४१॰ समय आ गया जब परिश्रम से आगे बढ़ेंगे, एकाएक भाग्य बदलेगा। ईश्वर उपासना करें।
४४२॰ आप यदि जागरुक हैं तो अपने विरुद्ध षडयंत्रकारियों पर विजय पायेंगे।
४४३॰ आपके भाग्य में परिवर्तन आने वाला है। आश्वस्त रहें।
४४४॰ यदि भाग्य को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो पीछे मुड़ कर न देखें। सफलता दौड़ कर पास आयेगी।

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