Wednesday, September 21, 2016

स्वरोदय शास्त्र

स्वर शास्त्र 


स्वर का अर्थ नासिका के दोनों छिद्रों द्वारा निरन्तर प्रवाहित होने वाली प्राण वायु है। दाहिना स्वरसे तात्पर्य नासिका के दाहिने छिद्र से प्रवाहित होने वाली वायु है तो बायां स्वरसे तात्पर्य नासिका के बायें छिद्र से प्रवाहित होने वाली वायु है। इन शब्दों को नाड़ीशब्द से भी पुकारते हैं तो इन्हें इड़ा एवं पिंगला नाम से भी पुकारते हैं। दाहिने स्वर को सूर्य नाड़ी और बायें स्वर को चन्द्र नाड़ी कहते हैं। नाम का प्रवाह एक-एक घंटे के बाद परिवर्तित होता रहता है। इसे स्वर का बदलना कहते हैं। एक घंटे सूर्य स्वर चलता है तो एक घंटे चन्द्र स्वर। स्वर परिवर्तन के समय स्वरों का संधि-काल भी आता है। संधि-काल में नाक के दोनों स्वरों का प्रवाह समान हो जाता है। यह संधिकाल अध्यात्म के अभ्यास का समय है। योगी जन अभ्यास से इच्छानुसार समय प्रवाह चलाते हैं।

समान प्रवाह ही सुषुम्ना नाड़ी है। इसे शून्य स्वर, जीव स्वर या रिक्त-स्वरभी कहते हैं। दोनों नाडिय़ों के संधिकाल में सुषुम्ना नाड़ी बहती है। सुषुम्ना प्रवाह के समय किया गया कोई सांसारिक कार्य शुभ फलदायक नहीं होता, इसलिए इसे रिक्त स्वर कहते हैं।
स्वर-विज्ञान के आदि प्रवत्र्तक शिव हैं। शिव ने यह योग पहले पार्वती को सिखाया, बाद में लोक में फैला।

नाडिय़ों का स्थान : शरीर के मध्य नाभि स्थान से असंख्य नाडिय़ां निकली हैं। योगियों के मतानुसार शरीर में 72000 नाडिय़ां हैं। इन्हीं नाडिय़ों से निर्मित अनेक चक्र हैं जो वायु, प्राण और देह के आश्रित हैं। सब नाडिय़ों में दस नाडिय़ां प्रधान एवं श्रेष्ठ हैं। ये दस नाडिय़ां हैं- इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना, गांधारी, हस्तिजिह्वया , पूषा, यशस्विनी, अलंबुबा, कूहू और शंखिनी। इड़ा नाड़ी वाम भाग में, पिंगला दक्षिण भाग में और सुषुम्ना मध्यप्रदेश में है। गांधारी बायें नेत्र में तथा हस्तिजिह्वया दाहिने नेत्र में है। दाहिने कान में पूषा, बायें कान में यशस्विनी और मुख में अलंबुबा नाड़ी है। लिंग देश में कुहू और गुदा स्थल में शंखिनी है।

वायु का स्थान : नाडिय़ों का आश्रय वायु है। पांच वायु प्रधान हैं - प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान। प्राण वायु शरीर के ऊपनी भाग हृदय में और अपान वायु नाभिदेश में नीचे रहती है। समान वायु नाभि देश में, उदान कंठ में और व्यान सारे शरीर में व्याप्त रहती है। इनके अतिरिक्त नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त और धनंजय नाम से पाँच और महत्त्वपूर्ण नाडिय़ां हैं जिनके द्वारा क्रियाएं होती हैं यथा - उगलना, छींकना, नेत्रोन्मीलन आदि।
झड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाडिय़ों का प्रवाह प्राणवायु के द्वारा होता है। इन्हीं नाडिय़ों के आधार पर ज्ञान प्राप्त किया जाता है। जब बायां स्वर चल रहा हो तो समझना चाहिए, इड़ा नाड़ी चल रही है। जब दाहिना स्वर चलता है तो समझना चाहिए पिंगला नाड़ी चल रही है। सम स्वर होने का अर्थ है कि सुषुम्ना में प्राण प्रवाहित हो रहे हैं। इड़ा में चन्द्रमा, पिंगला में सूर्य और सुषुम्ना में हंस स्थित है। हंस जीवात्मा को कहते हैं।

स्वर की पहचान : दोनों नाकों में प्राण का प्रवाह समान नहीं होता। किसी समय एक नासिका में प्राणों का प्रवाह तीव्र गति से होता है तो दूसरी में धीमे-धीमे। कभी दूसरी में तीव्र गति से होता है तो पहली में धीरे-धीरे। कभी-कभी दोनों नासिकाओं में प्राणों का प्रवाह समान गति से प्रवाहित होता है। इन्हीं प्रवाहों से स्वर का ज्ञान किया जाता है। इन स्वरों के प्रवाह का समय प्रकृति द्वारा नियत किया हुआ है। जिस प्रकार दिन, रात, मौसम, ग्रह इत्यादि की गति और नियम निश्चित हैं उसी प्रकार स्वरों का भी समय निश्चित है।

स्वर प्रवाह का समय
1. सूर्योदय से निश्चित होता है।
2. प्रति एक घंटे बाद बदल जाता है।
3. संधि समय में सुषुम्ना चलती है।
4. सुषुम्ना का प्रवाह एक से तीन मिनट तक रहता है।
5. प्रवाह इच्छानुसार बदला जा सकता है।
6. पक्ष ज्ञान आवश्यक है।

- आचार्य अनुपम जौली

Friday, July 29, 2016

सावन के महीने में करें हनुमानजी के ये उपाय, मनमांगी मुराद होगी पूरी

सावन के महीने में करें हनुमानजी के ये उपाय, मनमांगी मुराद होगी पूरी


श्रावण (सावन) महीने के महीने में जहां भगवान शिव की आराधना का विशेष फल मिलता है वहीं इस समय भोलेनाथ के ग्यारहवें रुद्रावतार हनुमानजी की भी पूजा की जाती है। सावन के महीने में किए गए हनुमानजी के इन उपायों से बड़े से बड़े काम भी आासानी से हो जाते हैं। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ उपाय

पहला उपाय
सावन माह के किसी भी मंगलवार को नहा-धोकर साफ धुले हुए वस्त्र पहनें। इसके बाद नजदीकी हनुमान मंदिर में जाकर चमेली के तेल तथा सिंदूर मिश्रित चोला चढ़ाएं। साथ ही चोला चढ़ाते समय एक दीपक हनुमानजी के सामने जला कर रख दें। दीपक में भी चमेली के तेल का ही उपयोग करें।

चोला चढ़ाने के बाद हनुमानजी को गुलाब के फूल की माला पहनाएं और केवड़े का इत्र हनुमानजी की मूर्ति के दोनों कंधों पर थोड़ा-थोड़ा छिटक दें। अब एक साबूत पान का पत्ता लें और इसके ऊपर थोड़ा गुड़ चना रख कर हनुमानजी को इसका भोग लगाएं। भोग लगाने के बाद उसी स्थान पर थोड़ी देर बैठकर तुलसी की माला से नीचे लिखे मंत्र का जप करें। कम से कम 5 माला जप अवश्य करें।

मंत्र-
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्र नाम ततुल्यम राम नाम वरानने।। 

अब हनुमानजी को चढाएं गए गुलाब के फूल की माला से एक फूल तोड़ कर उसे एक लाल कपड़े में लपेटकर अपने धन स्थान यानी तिजोरी में रखें। उसी समय में घर में धन आने लगेगा।

दूसरा उपाय
सावन के किसी भी मंगलवार को सुबह स्नान करने के बाद बड़ के पेड़ का एक पत्ता तोड़ें और इसे साफ स्वच्छ पानी से धो लें। अब इस पत्ते को कुछ देर हनुमानजी की प्रतिमा के सामने रखें और इसके बाद इस पर केसर से श्रीराम लिखें। अब इस पत्ते को अपने पर्स में रख लें। साल भर आपका पर्स पैसों से भरा रहेगा। इसके बाद जब दोबारा सावन का महीना आए तो इस पत्ते को किसी नदी में प्रवाहित कर दें और इसी प्रकार से एक और पत्ता अभिमंत्रित कर अपने पर्स में रख लें।

तीसरा उपाय
सावन में मंगलवार के दिन किसी हनुमानजी के मंदिर जाएं और वहां बैठकर राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। इसके बाद हनुमानजी को गुड़ और चने का भोग लगाएं। जीवन में यदि कोई समस्या है तो उसका निवारण करने के लिए प्रार्थना करें।

चौथा उपाय
सावन में मंगलवार के दिन किसी ऐसे मंदिर जाएं जहां भगवान शिव हनुमानजी दोनों की ही प्रतिमा हो। वहां जाकर शिव हनुमानजी की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी के दीपक जलाएं। इसके बाद वहीं बैठकर शिव चालीसा तथा हनुमान चालीसा का पाठ करें। इस उपाय से भगवान शिव हनुमानजी दोनों की ही कृपा आपको प्राप्त होगी।

पांचवा उपाय
सावन के मंगलवार को पास ही स्थित हनुमानजी के किसी मंदिर में जाएं और हनुमानजी को सिंदूर चमेली का तेल अर्पित करें और अपनी मनोकामना कहें। इससे हनुमानजी प्रसन्न होते हैं और भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

छठा उपाय
मंगलवार के दिन घर में पारद से निर्मित हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित करें। पारद को रसराज कहा जाता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार पारद से बनी हनुमान प्रतिमा की पूजा करने से बिगड़े काम भी बन जाते हैं। पारद से निर्मित हनुमान प्रतिमा को घर में रखने से सभी प्रकार के वास्तु दोष स्वतः ही दूर हो जाते हैं साथ ही घर का वातावरण भी शुद्ध होता है।

प्रतिदिन इसकी पूजा करने से किसी भी प्रकार के तंत्र का असर घर में नहीं होता और ही साधक पर किसी तंत्र क्रिया का प्रभाव पड़ता है। यदि किसी को पितृदोष हो तो उसे प्रतिदिन पारद हनुमान प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए। इससे पितृदोष समाप्त हो जाता है।

सातवा उपाय
सावन में किसी मंगलवार के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद बड़ के पेड़ से 11 या 21 पत्ते तोड़े लें। ध्यान रखें कि ये पत्ते पूरी तरह से साफ साबूत हों। अब इन्हें स्वच्छ पानी से धो लें और इनके ऊपर चंदन से भगवान श्रीराम का नाम लिखें। अब इन पत्तों की एक माला बनाएं। माला बनाने के लिए पूजा में उपयोग किए जाने वाले रंगीन धागे का इस्तेमाल करें। अब समीप स्थित किसी हनुमान मंदिर जाएं और हनुमान प्रतिमा को यह माला पहना दें। हनुमानजी को प्रसन्न करने का यह बहुत प्राचीन टोटका है।

आठवां उपाय
यदि आप पर कोई संकट है तो सावन में किसी मंगलवार के दिन नीचे लिखे हनुमान मंत्र का विधि-विधान से जप करें। इसकी विधि इस प्रकार है कि सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनें। इसके बाद अपने माता-पिता, गुरु, इष्ट कुल देवता को नमन कर कुश का आसन ग्रहण करें। पारद हनुमान प्रतिमा के सामने इस मंत्र का जप करेंगे तो विशेष फल मिलता है। जप के लिए लाल हकीक की माला का प्रयोग करें। मंत्र निम्न प्रकार हैः

ऊं नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा
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पति-पत्नी के रिश्ते में आए खटास तो आजमाएं इस टोटके को
परिवार में यदि पति-पत्नी के मध्य क्लेश रहता हो, अथवा अन्य पारिवारिक सदस्यों के मध्य वैचारिक मतभेद अधिक रहते हों आप समझ नहीं पा रहे हैं कि इस समस्या से आप कैसे छूटकारा पाएं। ऐसा क्या करें? कि आपका दांपत्य जीवन सुख शांति से भर जाएं आपसी मतभेद खत्म हो जाए। इसके लिए आपको कुंजिका स्त्रोत के मंत्र का नियमित रूप से बताई गई विधि के अनुसार जप करना चाहिए। इससे निश्चित ही आपके रिश्ते में मिठास बढऩे लगेगी। प्रतिदिन इस मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। जप लाल चन्दन की माला से करना चाहिए और पूजा के समय कालिका देवी या दुर्गा जी विग्रह पर लाल पुष्प अवश्य चढ़ाने चाहिये। मंत्र इस प्रकार है

धां धी धू धूर्जटे: पत्नी वां वी वू वागधीश्वरी। क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शा शीं शू में शुभं कुरू।।

पति-पत्नी के साथ-साथ यदि अन्य सदस्यों के मध्य भी किसी प्रकार के वैचारिक मतभेद हों या परस्पर सामंजस्य का अभाव हो, तो ऐसी स्थिति में यह प्रयोग किया जा सकता है। सुबह सूर्योदय के समय घर के मटके या बर्तन में से घर के सभी सदस्य पानी पीते हों, उसमें से एक लोटा जल लें और तत्पश्चात उस जल को अपने घर में प्रत्येक कक्ष में छत पर छिड़के। इस दौरान किसी से बात नहीं करें एव मन ही मन निम्रलिखित मन्त्र का उच्चारण करते रहें।


इस मंत्र से सब करने लगेंगे आपकी तारीफ

कोई भी इंसान अपनी बुराई सुनना पसंद नहीं करता है। कोई भी नहीं चाहता कि उसका दुनिया में कोई भी दुश्मन हो। लेकिन कोई कितनी भी कोशिश कर ले उसका कोई ना कोई विरोधी जरूर रहता है। ऐसे में जब कोई आपके पीठ के पीछे आपकी बुराई करता है। सफलता के रास्ते में रोड़े अटकाता है। ऐसे में तनाव होना एक साधारण सी बात है।यह कोई नहीं चाहता कि इस दुनिया में उसका कोई दुश्मन भी हो।

यह अनुभव की बात है कि कई बार जहां इंसानी प्रयास सफल नहीं होते, वहां कोई तंत्र-मंत्र चमत्कार कर देते हैं। अपने विरोधियों अथवा शत्रुओं को शांत करने, अपने अनुकूल बनाने अथवा अपने वश में करने के लिये, नीचे दिये गए मंत्र का नियमबद्ध जप करना आश्चर्यजनक प्रभाव दिखाता है-

मंत्र-

नृसिंहाय विद्महे, वज्र नखाय धी मही तन्नो नृसिहं प्रचोदयात्

ॐ तत सत ||