Saturday, August 27, 2011

गणेश चतुर्थी Ganesh Chaturthi

01/09/2011 को गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन निषेध



 
प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात्‌ व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है।
जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। 
इस दिन चांद के दर्शन करने से भगवान श्री कृष्ण को भी मणि चोरी का कलंक लगा था । 

यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-
    'सिहः प्रसेनम्‌ अवधीत्‌, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥'

भाद्रपद्र शुक्ल की चतुर्थी ही गणेश चतुर्थी कहलाती है । श्री गणोश विध्न विनाशक है । इन्हें देव समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है । भाद्रपद्र कृष्ण चतुर्थी को गणेश जी की उत्पत्ति हुई थी, उनका गजानन रुप में जन्म भाद्रपद शुक्ल चौथ को हुआ ।
श्री गणेश जी बुध्दि के देवता है । उनका वाहन चूहा है । इनका सर्वप्रिय भोग मोदक है । इस दिन प्रात:काल स्नानादि करके सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी की गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है । गणेश जी की इस प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर मुंह पर कोरा कपड़ा बांधकर उस पर स्थापित किया जाता है । मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाकर षोड्शोपचार से उनका पूजन करना चाहिए तथा दक्षिणा अर्पित करके 21 लडडुओं का भोग करने का विधान है । इनमें से पांच लडडू गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राम्हणों में बांट देना चाहिए । गणेश जी की पूजा सायंकाल के समय की जानी चाहिए । 
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