कार्तिक पूर्णिमा
व्रत
व तप की दृष्टि से कार्तिक मास का विशेष महत्व है | स्कन्द पुराण में कहा भी गया है की-
" न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समम युग्म |
न
वेदसदृशम् शास्त्रं न तीर्थम गंगया समम ||"
अर्थात कार्तिक के सामान दूसरा कोई मास नहीं, सत्ययुग के सामान कोई युग नहीं, वेदों के सामान कोई शास्त्र नहीं और
गंगा जी के सामान कोई तीर्थ नहीं है | कार्तिक
मास ऐसा मास है की इसकी अमावस्या एवं पूर्णिमा दोनों को ही पुराणादि शास्त्रो में विशेष पर्व
के रूप में मन गया है | क्योंकि कार्तिक अमावस्या को प्रकाश पर्व (दीपावली) के रूप में तथा
कार्तिक पूर्णिमा को महापुनीत ( बड़ी पवित्र ) तिथि के रूप में मनाया जाता है | अत: कार्तिक पूर्णिमा को किये गए स्नान, दान, होम, यज्ञ और उपासना आदि का अनंत फल होता है
| इस
दिन गंगा स्नान तथा सायंकाल दीपदान का विशेष महत्व है | इसी कार्तिक पूर्णिमा को सायंकाल भगवान
का मत्स्यावतार हुआ था, इस कारण इस दिन किये गए दान, व्रत जपादि का दस यज्ञों के सामान फल
प्राप्त होता है | जैसा की पद्मपुराण में कहा गया है-
"वरन दत्वा यतो विष्णुर्मत्स्यरूपो तत:|
तस्याम्
दत्तं हुतम जप्तं दशयज्ञफलम् स्मृतम ||"
उक्त वचन से स्पष्ट होता है की कार्तिक पूर्णिमा को
ही भगवान के मत्स्यावतार का आभिर्भाव हुआ था | अत: इस कारण कार्तिक पूर्णिमा का महत्व और भी बढ़ जाता
है | इस दिन
यदि कृतिका नक्षत्र युक्त पूर्णिमा तिथि हो तो यह महाकार्तिकी होती है| जो
स्त्री पुरुष पूरे महीने कार्तिक मास स्नान करते है उनका नियम भी कार्तिक पूर्णिमा
को पूरा हो जाता है | कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्राय: श्रीसत्यनारायण व्रत
की कथा सुनने, सायंकाल में देव मंदिरों, पीपल
का वृक्ष व तुलसी के पौधे के समीप दीपदान करने से व्यक्ति के सकल मनोरथ सिद्ध होते
है | साथ ही
साथ देशभर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करने व
दीपदान का विधान किया जाता है | ऐसा करने से मनुष्य पापों से निवृत हो जाता है | कशी
में तो यह तिथि देवदीपावली महोत्सव के रूप में मनाई जाती है | अत: इस
दिन स्नान ध्यान से निवृत होकर व्रत उपवास एवं हरिकीर्तन या पवित्र नदियों के संगम
पर स्नान करने वाला भगवांन की विशेष कृपा का पात्र बन सकता है |
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