राजयोग विचार
उच्चपदासीन राजयोग-
१. यदि
लग्रेश केन्द्र में हो और अपने मित्र ग्रहों से दृष्ट हो तथा लग्र में शुभग्रह हों तो जातक न्यायाधीश अथवा
विधिमंत्री आदि पद प्राप्त करता है।
२. यदि
पूर्ण चन्द्र जलचर राशि के नवमांश में चतुर्थ भावस्थ हो, स्वराशिस्थ
शुभग्रह लग्र में हो तथा केन्द्र में पापग्रह न हो तो ऐसा जातक राजदूत अथवा
गुप्तचर विभाग में किसी उच्च पद को प्राप्त करता है।
३. किसी
ग्रह की उच्च राशि लग्र में हो, वह ग्रह यदि अपने नवांश अथवा मित्र
अथवा उच्च के नवांश में केन्द्रगत शुभाग्रह से दृष्ट हो तो ऐसा जातक शासनधिकारी का
पद प्राप्त करता है।
उच्चपद कारक योग
जब दो या दो से अधिक ग्रह उच्चस्थ या
स्वराशिस्थ होकर परस्पर केन्द्रों में और लग्र से भी केन्द्र में हो तो कारक योग
होता है जो धनी व उच्च पद का अधिकारी बनाता है। जब जन्म लग्रप ही नवमांश लग्र हो।
सूर्य से द्वितीय भाव में शुभग्रह हो। कुण्डली में चारों केन्द्रों में ग्रह हो,
कारक
योग हो इनमें से कोई भी योग होने पर व्यक्ति धनी व उच्च पदाधिकारीयोग बन जाता है।
धनी यशस्वी राज्याधिकारी योग -
१. लग्र
से केन्द्रों में शुभग्रह षष्ठ अष्टम भाव रिक्त हों या इनमें शुभग्रह स्थित हो।
२. लग्र
और व्यय के स्वामी परस्पर केन्द्रगत मित्र ग्रहों से दृष्ट हों।
३. लग्रेश
जिस राशि में स्थित हो उस राशि का स्वामी स्वक्षेत्रीय या उच्चस्थ होकर केन्द्र
में स्थित हो।
४. मेश
लग्र में मंगल दशमस्थ शनि के साथ स्थित हो, गुरु से भी
दृष्ट हो।
५. कर्क लग्र में चन्द्र
कर्क में बुध सप्तम में होने पर शुभग्रह केन्द्रस्थ हो और षष्ठ व अष्टम में शुक्र
गुरु उदित हों और उनके साथ धनेश सूर्य अष्टम में हों।
६. चन्द्र
लग्रेश व लग्रेश दोनों एकत्र केन्द्रस्थ होकर अधिमित्र ग्रह से दृष्ट हो तथा लग्र
को बली ग्रह देखता हों।
७. सूर्य
से बुध द्वितीय से हो बुध, से चन्द्र एकादश में हो चन्द्र से गुरु
नवम भावस्थ हो, तुला लग्र में सूर्य व्यय में बुध लगन में
चन्द्र एकादश में और गुरु सप्तम भावस्ाि
हों।
८. गुरु
से केन्द्र में शुक्र हो और दशमेश बलवान हों।
९. १,२,६,१२
भावों में ग्रह स्थित हों दशमेश बलवान हों।
१०. किसी
पुरुष का दिन में जन्म हो और लग्र चन्द्र लग्र, सूर्य लग्र
तीनों विषम राशि में हों।
११. किसी
स्त्री का जन्म रात्रि में हो और तीनों लग्र में चन्द्र लग्र, सूर्य
लग्र समराशि हों।
१२. किसी
स्त्री का जन्म रात्रि में हो और तीनों लग्र सम राशि में हो।
१३. उच्चस्थ
ग्रह जिस नवमांश में हो उसका स्वामी उच्च राशि का केन्द्रस्थ हो और लग्रेश बली हो।
१४. लग्र
में ३ शुभग्रह हो।
१५. लग्र
में ३ पापग्रह से दरिद्री, अपमानित रोगी चिन्तित योग बनता है।
१६. नवमेश
तथा शुक्र उच्च राशि अथवा स्वराशि में स्थित होकर केन्द्र त्रिकोण में हो।
१७. उच्चराशिगत
नवमेश, स्वराशि या मूल त्रिकोण में नवमेश लग्र से केन्द्र में हो।
१८. जब
कोई ग्रह अधिकतर लग्रों का मित्र होता हुआ पंचमस्थ या अन्य धनप्रद भावस्थ राहु
केतु जिस राशि में हों उसका स्वामी हो और बलवान् हो तो लाटरी धन लाभ होता है।
१९. जन्म
लग्र या चन्द्र लग्र ६,७,८ भाव में शुभग्रह हों अथवा दोनों लग्र
में से किसी से ३,६,१०,११ भाव में
शुभग्रह हों।
२०. सूर्य
से द्वितीय भाव में चन्द्र को छोडक़र कोई ग्रह हों अथवा सूर्य से व्यय भाव में
चन्द्र को छोडक़र कोई ग्रह हो अथवा सूर्य से द्वितीय और द्वादश भाव चन्द्र को छोडक़र
अन्य ग्रह हों अथवा चन्द्र से द्वितीय और द्वादश में सूर्य को छोडक़र अन्य ग्रह
हों।
२१. चन्द्र
से द्वितीय में सूर्य छोडक़र सूर्य ग्रह हो या सूर्य से व्यय में सूर्य को छोडक़र
अन्य ग्रह हो अथवा चन्द्र से द्वितीय और द्वादश में सूर्य को छोडक़र अन्य ग्रह हो।
२२. यदि
सप्तमेश दशम भाव में उच्च राशिगत हो। अथवा दशमेश भागयेश का योग हो उपर्युक्त सभी
योग धनी यशस्वी, राज्याधिकाीर आदि शुभ योग कारक है।
२२. द्वितीय
व पंचम भाव में बुध, गुरु, शुक्र स्थित हो अथवा गुरु बुध या शुक्र
की राशि में स्थित हो तो श्रेष्ठ संगीतज्ञ योग बनता है।
दशमेश पंचम में बुध केन्द्र में हो, सूर्य
सिंह राशि में हो तो शारदा योग बनता है अथवा चन्द्र से नवम पंचम गुरु हो और गुरु
बुध से लाभ में हो।
शुक्र, गुरु तथा बुध केन्द्र में या त्रिकोण
में हो अथवा यही तीन शुभग्रह धन भाव में अपने उच्च या मित्र ग्रह की राशि में हो
और गुरु बलवान हो तो सरस्वती योग बनाकर व्यकित को कवि, शास्त्रज्ञ,
ग्रन्थकर्ता,
धनी,
स्त्री,
पुत्र
से युक्त व राज्य सम्मानित करता है।
International School of Astrology and Divine Sciences
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