Saturday, November 15, 2014

रामचरित मानस के चौपाई से बेडा पार लगायेगे श्री हनुमान जी

चमत्कारिक रामचरित मानस की चौपाइयां 

ग्रंथो के अनुसार कलयुग में श्री हनुमान जी की ही शक्ति निर्बल इंसान को सहायता प्रदान करेगी | कलयुग में संस्कृत के मंत्र, जिनका उच्चारण व प्रयोग न सिर्फ बहुत कठिन है उससे लाभ प्राप्ति के लिए भी बहुत तप इत्यादि की आवश्यकता पड़ती है | ऐसे में भगवान राम व हनुमान भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी ने जन बोलचाल की भाषा में रामचरित मानस की रचना की | और वाराणसी में भगवान शंकर ने मानस की चौपाइयों को मंत्र शक्ति प्रदान की |

रामचरित मानस की सभी चौपाइयों के अर्थो के अनुसार मानव के मनोरथ सिद्ध होते है | मानस सिद्ध मंत्र का विधान यह है की पहले रात को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा सिद्ध करना चाहिए | फिर जिस जिस कार्य के लिए मंत्र जप की आवश्यकता हो उसके लिए नित्य जप करना चाहिए |

जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जिस चौपाई का जप बतलाया गया है उसको सिद्ध करने के लिए सर्व प्रथम श्री हनुमान जी की आशीर्वाद मुद्रा वाली तस्वीर या मूर्ति अथवा रामदरबार की तस्वीर या मूर्ति के समक्ष अष्टांग हवन जिसकी सामग्री होगी - १) चन्दन का बुरादा २) तिल ३) शुद्ध देसी घी ४) सुद्ध शक्कर ५) अगर ६) तगर ७) कपूर ८) सुद्ध केसर ९) नागरमोथा १०) पंचमेवा ११) जौ १२) चावल से उसी चौपाई द्वारा १०८ बार हवन करना चाहिए | हवन की प्रत्येक आहुति में चौपाई आदि के अंत में 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण करना चाहिए | उपरोक्त सामग्री में पंचमेवा में पिश्ता, बादाम, किशमिश, अखरोट और काजू ले सकते है |

एक दिन हवन करने से मानस के मंत्र सिद्ध हो जाते है | इसके पश्चात जब तक की कार्य सफल न हो जाय तब तक उस चौपाई का जप प्रतिदिन एक माला अर्थात एक सौ आठ बार जपना चाहिए |

विविध कामना सिद्धि के कुछ मानता निम्न लिखित है जिनसे आप लाभ प्राप्त कर सकते है :-

1) मुकदमे में जीत हेतु -
पवन तनय बल पवन सामना, बुद्धि बिबेक बिज्ञान निधाना |
कवन सो काज कठिन जग माही, जो नहीं होइ तात तुम पाहि ||

2) श्री हनुमान जी की प्रसन्नता प्राप्ति के लिए -
सुमिरि पवनसुत पावन नामू | अपने बस करी राखे रामू ||

3) मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिए -
हनुमान अंगद रन गाजे | हाँक सुनत रजनीचर भाजे ||

4) डर व भूत भागने का मंत्र -
प्रनवउँ पवनकुमार खेल बन पावक ग्यान घन |
जासु हृदय अगर बसहि राम सर चाप धार ||

5) ज्ञान-प्राप्ति के लिये-
छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।

6) यात्रा की सफलता के लिए-
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥

7)  विवाह के लिये-
तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥

8) शत्रुता समाप्ति हेतु -
बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥

9) मनचाहे कार्यों की सफलता हेतु -
भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।

10) काम धंदे के लिये
बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।

11) गरीबी समाप्ति हेतु -
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।

12) विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥

13) शिक्षा में सफ़लता के लिये
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥

14) संकट-नाश के लिये
जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।

दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।

अधिक जानकारी के लिए निम्न वेबसाइट पर जा सकते है :-

Wednesday, November 5, 2014

कार्तिक पूर्णिमा का महात्मय

कार्तिक पूर्णिमा


व्रत व तप की दृष्टि से कार्तिक मास का विशेष महत्व है | स्कन्द पुराण में कहा भी गया है की-
" न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समम युग्म |
न वेदसदृशम् शास्त्रं न तीर्थम गंगया समम ||"
अर्थात कार्तिक के सामान दूसरा कोई मास नहीं, सत्ययुग के सामान कोई युग नहीं, वेदों के सामान कोई शास्त्र नहीं और गंगा जी के सामान कोई तीर्थ नहीं है | कार्तिक मास ऐसा मास है की इसकी अमावस्या एवं पूर्णिमा दोनों को ही पुराणादि शास्त्रो में विशेष पर्व के रूप में मन गया है | क्योंकि कार्तिक अमावस्या को प्रकाश पर्व (दीपावली) के रूप में तथा कार्तिक पूर्णिमा को महापुनीत ( बड़ी पवित्र ) तिथि के रूप में मनाया जाता है | अत: कार्तिक पूर्णिमा को किये गए स्नान, दान, होम, यज्ञ और उपासना आदि का अनंत फल होता है | इस दिन गंगा स्नान तथा सायंकाल दीपदान का विशेष महत्व है | इसी कार्तिक पूर्णिमा को सायंकाल भगवान का मत्स्यावतार हुआ था, इस कारण इस दिन किये गए दान, व्रत जपादि का दस यज्ञों के सामान फल प्राप्त होता है | जैसा की पद्मपुराण में कहा गया है-
"वरन दत्वा यतो विष्णुर्मत्स्यरूपो तत:|
तस्याम् दत्तं हुतम जप्तं दशयज्ञफलम् स्मृतम ||"
उक्त वचन से स्पष्ट होता है की कार्तिक पूर्णिमा को ही भगवान के मत्स्यावतार का आभिर्भाव हुआ था | अत: इस कारण कार्तिक पूर्णिमा का महत्व और भी बढ़ जाता है | इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र युक्त पूर्णिमा तिथि हो तो यह महाकार्तिकी होती है| जो स्त्री पुरुष पूरे महीने कार्तिक मास स्नान करते है उनका नियम भी कार्तिक पूर्णिमा को पूरा हो जाता है | कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्राय: श्रीसत्यनारायण व्रत की कथा सुनने, सायंकाल में देव मंदिरों, पीपल का वृक्ष व तुलसी के पौधे के समीप दीपदान करने से व्यक्ति के सकल मनोरथ सिद्ध होते है | साथ ही साथ देशभर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करने व दीपदान का विधान किया जाता है | ऐसा करने से मनुष्य पापों से निवृत हो जाता है | कशी में तो यह तिथि देवदीपावली महोत्सव के रूप में मनाई जाती है | अत: इस दिन स्नान ध्यान से निवृत होकर व्रत उपवास एवं हरिकीर्तन या पवित्र नदियों के संगम पर स्नान करने वाला भगवांन की विशेष कृपा का पात्र बन सकता है |


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Sunday, November 2, 2014

वृश्चिक राशि के शनि की दृष्टि- क्या बदलेगी आपका भविष्य ?

वृश्चिक राशि के शनि की दृष्टि- 
क्या बदलेगी आपका भविष्य ?
- Acharya Anupam Jolly


शनि एक राशि पर ढाई वर्ष रहता है | जब शनि जन्म राशि से बारहवे, पहले व दूसरे स्थानो में हो तो साढ़े साती होती है | यह साढ़े सात साल तक चलती है अत: इसे शनि की साढ़े साती कहते है | यह समय प्राय कष्ट दायक होता है | यथा -

" द्वादशे जन्मगे राशौ द्वितीये च शनैश्चर:|
सार्धानी सप्तवर्षाणि तदा दु:खैर्युतो भवेत् ||

शनि गोचर से बारहवे स्थान पर हो तो सर पर, जन्मराशि में हो तो हृदय पर, द्वितीये स्थान पर हो तो पैर पर उतरता हुआ अपना प्रभाव डालता है |
जन्म राशि से शनि चतुर्थ, अष्टम हो तो ढैया होती है, जो ढाई वर्ष चलती है | यह भी व्यक्ति के लिए कष्टकारी होती है |

इस वर्ष २ नवम्बर २०१४ की रात्रि से वर्ष समाप्ति दिनांक २० मार्च २०१५ तक शनि मार्गी व वक्री गति से वृश्चिक राशि में विचरण करेगा | इस वर्ष दिनांक २ नवम्बर २०१४ को रत ०८-५५ बजे कुम्भ राशि स्थित चन्द्रमा में ही शनि देव वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा | जिसके अनुसार मेषादि राशियों पर उसका प्रभाव निम्न प्रकार पड़ेगा |

मेष : मेष राशि वालो को अनावश्यक विवाद, मानसिक उद्वेग, लाभ कम, खर्चे की अधिकता बनी रहेगी |
वृषभ : व्यवसायिक सफलता, समाज में मान सम्मान में वृद्धि एवं मनोबल ऊँचा रहेगा |
मिथुन : मनोबल ऊँचा होगा तथा व्यवसाय में प्रगति के मार्ग प्रशस्त बनेगे, सद्विचरो की वृद्धि से धार्मिक कार्यो में रूचि बढ़ेगी |
कर्क : व्यापारिक स्थिति के साथ वाणी की कठोरता से बनते कार्यो में संघर्षप्रद साबित होगी |
सिंह : आपको शनि की लघु कल्याणकारी ढैय्या आने से कुछ पीड़ा व चिंताओं के साथ साथ धन का खर्च भी बढ़ रहा है |
कन्या : विपरीत परिस्तिथियाँ अनुकूल होंगी, जिससे रुके काम बनते दिखाई देंगे | साथ ही व्यापार में लाभ व मनोबल बढ़ेगा |
तुला : शनि की मद्यकालीन व उतरती साढ़ेसाती मध्यम फलप्रद रहेगी | व्यापार धंधो में धन लाभ होता रहेगा किन्तु शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना आवश्यक रहेगा | मान सम्मान के साथ नवीन कार्य की रूपरेखा बनेगी |
वृश्चिक : श्रम संघर्ष की अधिकता बनेगी, दांपत्य जीवन में तनाव, लाभ कम व खर्चे अधिकता एवं शारीरिक सुख हेतु सचेत रहना होगा |
धनु : शनि की प्रारम्भिक साढ़े साती लगने से प्रतिकूल स्थितियां बनेगी एवं धन व्यय के साथ मानसिक पीड़ा होगी |
मकर : शनि का राशि परिवर्तन समृद्धि कारक होगा, उच्चाधिकारियों से मेल मिलाप बढ़ेगा, नौकरी पेशा वालों की पदोन्नति के अवसर प्राप्त होंगे |
कुम्भ : साधारण फलप्रद, स्वजनो  व मित्रो का सहयोग प्राप्त होगा, परिश्रम व मेहनत का फल कम प्राप्त होगा |
मीन : स्वास्थ्य में सुधर किन्तु मानसिक चिंताओं का सामना करना पड़ सकता है एवं शारीरिक कष्ट व धनहानि होगी |



Sunday, August 3, 2014

शनि पीड़ा से मुक्ति का सरल व निश्चित उपाए

दशरथ की शनिदेव स्तुति 


पद्म पुराण में शनि के दोष और शनि पीड़ा से मुक्ति के लिए बहुत ही सुन्दर कथा का वर्णन आता है |
पद्म पुराण के अनुसार शनि देव के नक्षत्रो में भ्रमण के दौरान कृतिका नक्षत्र के अंतिम चरण की उपस्थिति पर ज्योतिषियों ने राजा दशरथ जी को बताया की अब शनिदेव रोहाणी नक्षत्र को भेदकर जाने वाले है, जिसके फलस्वरूप पृथ्वी पर आने वाले बारह वर्ष तबाही के रहेंगे, अकाल पड़ेगा, महामारी फैलेगी इत्यादि |
इस पर राजा दशरथ ने मुनि वशिष्ठ जी आदि ज्ञानियों को बुलाकर इसका उपाए पूछा, जिसपर श्री वशिष्ठ जी ने बताया इसका कोई भी उपाए संभव नहीं है ये तो ब्रह्मा जी के लिए भी असाध्य है | यह सुनकर राजा दशरथ परेशान हो कर, बहुत ही साहस जुटाकर जनता को कष्ट से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपने दिव्य अस्त्र व दिव्य रथ लेकर सूर्य से सवा लाख योजन ऊपर नक्षत्र मंडल में पहुंच गए |
महाराजा दशरथ रोहाणी नक्षत्र के आगे अपने दिव्य रथ पर खड़े हो गए और दिव्य अस्त्र को अपने धनुष में लगाकर शनिदेव को लक्ष्य बनाने लगे | इसपर शनिदेव कुछ भयभीत हुए परन्तु जल्दी ही हस्ते हुए उन्होंने महाराजा दशरथ को कहा राजा मेरी दृष्टि के सामने जो भी आता है वो भस्म हो जाता है | मानव, देवता, असुर सभी मेरी दृष्टि से भयभीत होते है परन्तु तुम्हारा तप, साहस, व निस्वार्थ भाव निश्चित सरहानीय है | मैं तुमसे प्रसन्न हूँ तुम्हारी जो भी इच्छा वो ही वर मांग लो | इसपर महाराजा दशरथ ने शनिदेव से कहा की हे शनिदेव कृपया रोहाणी नक्षत्र का शकट भेद न करे | शनिदेव ने प्रसन्नता पूर्वक महाराजा दशरथ को ये वर दे दिया साथ ही एक और वर मागने के लिए कहा | इसपर राजा दशरथ ने शनिदेव से बारह वर्षो के विनाश न करने का वचन लिया जिसे भी शनिदेव ने स्वीकार कर लिया |
इसके बाद महाराजा दशरथ ने धनुष बाण रखकर हाथ जोड़कर शनिदेव की स्तुति निम्न प्रकार से की -
नमः कृष्णाय नीलाय शीतिकण्ठनिभाय | नमः कालाग्निरूपाय कृतान्ताय वै नमः ||
नमो निर्मांसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय | नमो विशालनेत्राय शुष्कोदरभायकृते ||
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे वै पुनः | नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोस्तु ते ||
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नमः | नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करलिने ||
नमस्ते सर्व भक्षाय बलीमुख नमोस्तु ते | सूर्यपुत्र नमस्तेस्तु भास्करेभयदाय ||
अधोदृष्टे नमस्तेस्तु संवर्तक नमोस्तु ते | नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोस्तु ते ||
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय | नमो नित्यं क्षुधातार्याय अतृप्ताय वै नमः ||
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेस्तु कश्यपात्मजसूनवे | तुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ||
देवासुरमनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा: | त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः ||
प्रसादम कुरु में देव वराहोरहमुपागतः || ( पद्म पुराण उ० ३४|२७-३५ )
स्तोत्र रूप में शनिदेव अपनी स्तुति सुनकर प्रसन होकर एक और वर मागने के लिए महाराजा दशरथ से कहा | राजा ने शनिदेव से कहा की आप किसी को भी कष्ट कभी भी दे | इसपर शनिदेव ने कहा राजन ये संभव नहीं है | मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार ग्रहो के द्वारा सुख कष्ट भुगतता है | व्यक्ति की जन्मपत्रिका की दशा, अन्तर्दशा गोचर के अनुसार मैं कष्ट प्रदान करता हूँ |
किन्तु मैं राजन तुम्हे आशीर्वाद देता हूँ की यदि कोई मनुष्य श्रद्धा एकाग्रता से तुम्हारे द्वारा रचित उक्त स्तोत्र का पाठ जाप करे तथा मेरी लोहे की प्रतिमा पर शमी के पत्तो से पूजा करे साथ ही साथ काले तिल, उड़द, काली गाय का दान करे तो दशा, अन्तर्दशा गोचर द्वारा उत्पन्न पीड़ा का नाश होगा और मैं उसकी रक्षा करूँगा |

तीनो वरदानों को प्राप्त कर महाराजा दशरथ शनिदेव को प्रणाम कर वापिस अपने रथ पर बैठ अयोद्या लौट गए|