Wednesday, December 8, 2010

SHIV TANDAV STOTRAM

SHIV TANDAV STOTRAM
॥ शिव तांडव स्तोत्रम् ॥

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले ,
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् ।
डमड्डमड्ड्मड्ड्मन्निनादवड्ड्मर्वयं ,
चकार चण्डताण्डवं तनोतु न: शिव:शिवम् ॥ 1 ॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्ध्दनि
।धगध्दगध्दगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके ,
किशोरचन्द्रशेखरे रति: प्रतिक्षणं मम ॥ 2 ॥

धराधरेन्द्ननन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर-
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुध्ददुर्धरापदि ,
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ 3 ॥

जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदम्बकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे , 
 मनोविनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ 4 ॥

सहस्त्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधुलिधोरणीविधुसराङध्रिपीठभू: ।
भुजंगराजमा्लया निबध्दजाटजूटक: ,
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखर: ॥ 5 ॥

ललाटचत्वरज्वलध्दनञ्ज्यस्फुलिंगभा-
निपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयुखलेखया विराजमान शेखरं ,
महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु न: ॥ 6 ॥

करालभाल्पट्टिकाधगध्दगध्दगज्ज्वल
ध्दनञ्ज्याहुतीकृतप्रचण्डपंचसायके ।
धराधरेन्द्ननन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥ 7 ॥

नवीनमेघमण्डलीनिरुध्ददुर्धरस्फुर
त्कुहुनिशीथिनीतम: प्रबन्धबध्दकन्धर: ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुर: ,
कलानिधानबन्धुर: श्रियं जगदधुरन्धर: ॥ 8 ॥

प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबध्दकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं ,
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥ 9 ॥

अखर्वसर्वमंगलाकलाकदम्बमञ्जरी ,
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं ,
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥ 10 ॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमभ्दुजंगमश्र्व्स ,
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिध्दिमिध्दिमिद्ध्वनन्मृदंगतुन्गमंगल
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्ड्ताण्डव: शिव: ॥ 11 ॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजो
र्गरिष्ठरत्नलोष्ठ्यो: सुहृद्विपक्षपक्षयो: ।
तृणारविन्दचक्षुषो: प्रजामहीमहेन्द्रयो: ,
समप्रवृत्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥ 12 ॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुंजकोटरे वसन् ,
विमुक्तदुर्मति: सदा शिर:स्थमञ्जलिं वहन् ।
विलोललोचनो ललामभाललग्नक: ,
शिवेति मन्त्रामुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥ 13 ॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं ,
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुध्दिमेति सन्त्ततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं ,
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम् ॥ 14 ॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं ,
य: शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां ,
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भु: ॥ 15 ॥

Log on for more stotram http://www.astrologynspiritualism.com/

1 comment:

  1. १९९९ से इस स्रोत का पाठ कर रहा हू, अद्बुत शक्ती है इसमें

    ReplyDelete