Friday, June 30, 2017

गुप्त नवरात्री भाग 2


नवरात्रि के पांचवे दिन करें मां स्कंदमाता की पूजा, मिलेगी दुनिया की सब खुशियां

नवदुर्गाओं में मां आद्यशक्ति के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की आराधना नवरात्रि के पांचवे दिन की जाती है। इस दिन साधक का मन विशुद्धि चक्र में स्थित होता हैं। इस दिन मां स्कंदमाता की आराधना करने से भक्तों की समस्त, दैहिक, दैविक और भौतिक कामनाओं की इच्छापूर्ति होती है और वह दिव्य शक्तियों को प्राप्त कर समस्त प्रकार के सुख प्राप्त करता है।


ऐसा है इनका स्वरूप

मां स्कंदमाता चतुर्भुजरूप धारी तथा सिंह पर सवार है। उनकी गोद में देवताओं के सेनापति कार्तिकेय विराजमान है, इसी से उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। इनका गौरवर्ण स्वरूप अत्यन्त शांत तथा भक्तों के समस्त कष्ट हर उन्हें सुख देने वाला है।


ऐसे करें पूजा

सुबह स्नान-ध्यान आदि से निवृत्त होकर श्वेत रंग के वस्त्र धारण करें तथा विधिवत मां स्कंदमाता की आराधना करें। उनके स्वरूप का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र का 108 बार जप करें। उन्हें पुष्प, माला, आदि अर्पित करें तथा केले का भोग लगाएं और गरीबों को भी केले का दान करें। इससे घर-परिवार में सुख-शांति आती है और साधक धर्म के मार्ग पर सफलतापूर्वक चलने के लिए अग्रसर होता है।


सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी

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शीघ्र विवाह हेतु नवरात्रि के छठे दिन करें मां कात्यायनी की पूजा, अन्य इच्छाएं भी होती है पूरी


नवरात्रि के छठे दिन मां भगवती के कात्यायनी स्वरूप का पूजन किया जाता है। इनकी आराधना और पूजा से भक्तों के बडे से बड़े कष्ट भी सहज ही दूर हो जाते हैं और इस संसार में सुख भोगकर मृत्यु उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है। भक्त इस चक्र में अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए मां कात्यायनी की आराधना करते हैं।


ऐसा है मां कात्यायनी का है दिव्य स्वरूप

महर्षि कात्यायन के घर कन्या रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। इनका स्वरूप अत्यन्त दिव्य तथा सुवर्ण की आभा वाला है। चार भुजाधारी मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिए हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं।


ऐसे करें पूजा

नवरात्रि के छठे दिन सुबह स्नान-ध्यान आदि से निवृत्त होकर मां कात्यायनी की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। उन्हें पुष्प, माला, धूप, दीप आदि अर्पित कर उनके निम्न मंत्र का जप करना चाहिए। पूजा के पश्चात मां को शहद का भोग लगाना चाहिए। इनकी पूजा के साथ ही भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए। इनकी पूजा का मंत्र निम्न प्रकार है-


या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


मां कात्यायनी की पूजा से व्यक्ति सभी प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है और उसकी हर इच्छा पूरी होती है। जिन लोगों का विवाह नहीं हो रहा, कात्यायनी की पूजा से उनका विवाह भी शीघ्र ही होता है।
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मां कालरात्रि की पूजा से तुरंत दूर होता है तंत्र-मंत्र तथा मूठ का असर
मां आद्यशक्ति के सप्तम रूप कालरात्रि की नवरात्रि में सातवें दिन पूजा की जाती है। काल का भी नाश करने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहा जाता है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है। अतः इस दिन आज्ञा चक्र में एकाग्र होकर मां का ध्यान कर उनकी पूजा करने से समस्त प्रकार के दुख, संताप दूर होते हैं। मां अपने भक्तों की आराधना से प्रसन्न होकर उनकी ग्रह बाधाओं के साथ-साथ अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि व अन्य सभी प्रकार के भय को भी दूर कर देती हैं।

भयावह परन्तु शुभ हैं इनका स्वरूप
मां कालरात्रि का शरीर गहन अंधकार की भांति स्याह काला है। सिर के बाल बिखरे हुए तथा गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। गर्दभ (गधे) पर सवार मां के तीन नेत्र सत, रज तथा तमोगुण का प्रतीक हैं। ये महाकाली की ही भांति अत्यन्त क्रोधातुर दिखाई देती है परन्तु अपने भक्तों को ये सदैव शुभ फल देती है जिससे कारण इनका एक नाम शुभंकरी भी है।

ऐसे करें मां कालरात्रि की पूजा
नवरात्रि के सातवें दिन सुबह स्नान-ध्यान आदि से निवृत्त होकर मां कालरात्रि की आराधना करें। इनकी प्रतिमा अथवा चित्र को लकड़ी की चौकी पर विराजमान करना कर यम, नियम व संयम का पालन करते हुए उन्हें मां को पुष्प, दीपक, धूप और नैवेद्य आदि अर्पण कर निम्न मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें।

या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
ॐ कालरात्र्यै नम:।।
ॐ फट् शत्रून साधय घातय ॐ।।

इस प्रकार पूजा तथा मंत्र जाप के बाद मां कालरात्रि को प्रसाद अर्पण करें। इनकी आराधना से समस्त प्रकार के तंत्र-मंत्र, मूठ आदि प्रयोगों को असर समाप्त हो जाता है। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके नाम स्मरण मात्र से ही दूर भाग जाते हैं। ये व्यक्ति की कुंडली में मौजूद ग्रह बाधाओं को भी शांत कर भक्तों ी समस्त समस्याओं का तुरंत निराकरण करती है।
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माता महागौरी की आराधना से दूर होते हैं सब संकट, मिलता है मनचाहा वर

 नवरात्रि के आठवें दिन आद्यशक्ति के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा की जाती है। इनके सभी वस्त्र तथा आभूषण श्वेत होने के कारण इन्हें श्वेताम्बरघरा भी कहा जाता है। शिव पुराण के अनुसार पार्वती रूप में उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। इस वजह से माता का पूरा शरीर काला पड़ गया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न भगवान शिव ने माता के काले शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमणि बना दिया। इसी से इनका नाम महागौरी पड़ा।

ऐसा है इनका स्वरूप
मां महागौरी साक्षात अन्नपूर्णा स्वरूप तथा अत्यन्त सौम्य हैं। इनका स्वरूप बहुत ही उज्ज्वल कोमल श्वेतवर्णा और श्वेत वस्त्रधारी चार भुजाओं वाली मां गौरी अपने दो हाथों में त्रिशूल और डमरू लिए हैं जबकि अन्य दो हाथों से वर और अभय प्रदान करती हैं। ये सफेद वृषभ यानी बैल पर सवार हैं। ये धन, वैभव तथा समस्त प्रकार के ऐश्वर्य को प्रदान करने वाली हैं।

ऐसे करें पूजा
नवरात्रि के आठवें दिन स्नान-ध्यान आदि से निवृत्त होकर मां का ध्यान करते हुए उन्हें धूप, दीप, पुष्प, इत्र आदि अर्पित करें। तत्पश्चात् उनके निम्न मंत्र का न्यूनतम 108 बार या अधिक से अधिक जितना हो सके, उतना जप करें। इसके बाद उन्हें नैवेद्य आदि अर्पण कर उनका आशीर्वाद लें।

या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

इनकी पूजा से कुंवारी लड़कियों को मनचाहे पति की प्राप्ति होती है जबकि जो पुरुष इनकी पूजा करते हैं, उनका पूरा जीवन सुखमय बीतता है। इनके भक्तों को न तो इस जीवन और न ही आगे की जीवन में किसी प्रकार के कोई कष्ट सहने पड़ते हैं, वरन उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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अष्टसिद्धियां तथा सभी प्रकार के ऐश्वर्य देती है मां सिद्धिदात्री की आराधना
  
नवरात्रि के अंतिम अर्थात नवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इनकी पूजा से भक्तों को अष्टसिद्धियां प्राप्त होती हैं तथा वह स्वयं ही ईश्वर के समान बन जाता है। इस जगत में ऐसा कोई कार्य नहीं जिसे मां सिद्धदात्री का भक्त न कर सकें। इसी से इन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।

ऐसा है मां सिद्धिदात्री का स्वरूप
आद्यशक्ति का सिद्धिदात्री स्वरूप गौरवर्ण, चतुर्भुज वाला व अत्यंत सौम्य है। ये सिंह पर सवार है तथा इनका आसन कमल है। इन्होंने अपने चारों हाथों में क्रमशः कमल, शंख, गदा व सुदर्शन चक्र धारण किए हुए हैं।

ऐसे करें पूजा
नवदुर्गाओं के अन्य स्वरूपों की ही भांति सिद्धिदात्री की भी पूजा की जाती है। परन्तु इन्हें पूजा में नवाह्न प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ किस्म के फूल और नौ प्रकार के फल अर्पित करने चाहिए। पूजा में सबसे पहले कलश और उसमें मौजूद देवी देवताओं की पूजा करें। इसके बाद मां के निम्न मंत्र का न्यूनतम 108 बार या अधिक से अधिक जितना हो सके, उतना जप करें। पूजा के अंत में देवी के बीजमंत्र "ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:" से कम से कम 108 बार आहुति दें।

या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

इनकी आराधना से व्यक्ति को अणिमा, महिमा,गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व तथा वशित्व ये आठ सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इसके अतिरिक्त 18 अन्य सिद्धियां भी उसे प्राप्त होती है। इनकी पूजा से व्यक्ति के कार्यों में आ रहे सारे व्यवधान समाप्त हो जाते हैं और उसकी सभी मनोकामनाएं स्वतः ही पूर्ण होती चली जाती हैं।


आचार्य अनुपम जौली www.astrologyrays.com

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