Wednesday, October 18, 2017

चाणक्य नीति


चाणक्य नीति


आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व पूरे भारतवर्ष को एक राष्ट्र के रूप में बांधने वाले आचार्य चाणक्य की कही बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय थी। उन्होंने अपने ग्रंथ अर्थशास्त्र में ऐसी कई बातों का वर्णन किया है जिन्हें यदि हम अपने जीवन में उतार लें तो बड़े से बड़े संकट से भी पार पाया जा सकता है। जानिए ऐसी ही कुछ ज्ञानवर्धक बातों के बारे में....


एक एवं पदार्थस्तु त्रिधा भवति वीक्षित:।
कुणप: कामिनी मांसं योगिभि: कामिभि: श्वभि:।।


अर्थात् किसी भी चीज को देखने के कई नजरिए होते हैं। हर व्यक्ति हर वस्तु को अपनी ही नजरिए से देखता है और उसी के अनुरूप उसकी आशा करता है। उदाहरण के लिए एक अत्यन्त सुंदर स्त्री एक कामी पुरूष के लिए वासनापूर्ति का साधन है जिससे माध्यम से वह अपनी काम पीड़ा तथा वासना को तृप्त कर सकता है। वही स्त्री एक सच्चे योगी अथवा सज्जन पुरुष के लिए एक निर्जीव वस्तु के समान है जिसका उसके लिए कोई उपयोग नहीं है। परन्तु एक भूखे और हिंसक पशु के लिए व स्त्री न तो वासनापूर्ति का साधन है और न ही निर्जीव है बल्कि उसकी क्षुधापूर्ति करने के लिए ईश्वर द्वारा भेजा गया भोजन है।



प्रातद्र्यूतप्रसंगेन मध्यान्हे स्त्रीप्रसंड्गत:।
रात्रौ चौर्यप्रसंगेन कालो गच्छत्यधीमताम्।।


अर्थात् बुद्धिमान पुरूषों को अपना समय अध्ययन तथा मनन में बिताना चाहिए। उन्हें सुबह उठ कर जुआरियों की कहानी (महाभारत), दिन में स्त्रियों के क्रिया-कलापों तथा रात को चोरों की गतिविधियों के बारे में पढ़ना चाहिए।

इस एक श्लोक में आचार्य चाणक्य ने रामायण तथा महाभारत का उदाहरण देते हुए ज्ञान दिया है कि व्यक्ति को सदैव सजग रहना चाहिए। उदाहरण के लिए जुआरियों की कहानी से तात्पर्य युधिष्ठिर से है जिन्होंने जुए में न केवल अपने राज-पाट को हार दिया वरन पत्नी द्रौपदी को भी भरी सभा में निर्वस्त्र होने के लिए विवश कर महाभारत के युद्ध की नींव रखी। इसी प्रकार रामायण में कैकयी तथा शूर्पनखा का उदाहरण देते हुए उन्होंने स्त्रियों के क्रिया-कलापों का वर्णन किया है। कैकयी ने जहां अपनी जिद से राम के लिए वनवास मांग राजा दशरथ की मृत्यु और भरत की शत्रुता का अपराध किया था, वहीं शूर्पनखा अपने महाबली भाई रावण तथा उसके पूरे परिवार के अंत का कारण बनी।



स्त्रीणां दि्वगुण आहारो बुदि्धस्तासां चतुर्गुणा।
साहसं षड्गुणं चैव कामोऽष्टगुण उच्यते।।


अर्थात् एक स्त्री पुरूष की अपेक्षा दुगुना आहार लेती है, चार गुणा बुदि्धमान और चालाक होती है, छह गुणा साहसी होती है और उसमें कामेच्छा (सेक्स करने की इच्छा) पुरूष से आठ गुणा होती है। यही कारण है कि स्त्री पुरूष को सदैव परास्त कर देती है।



नाऽत्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपा:।।


अर्थात् आदमी को कभी भी सीधा और सरल नहीं होना चाहिए। जंगल में जो पेड़ सीधे, चिकने होते हैं और जिन्हें काटने में कठिनाई नहीं होती, उन्हें ही सबसे पहले काटा जाता है।



यस्याऽर्थास्तस्य मित्राणि यस्याऽर्थास्तस्य बान्धवा:।
यस्याऽर्था: स पुमांल्लोके यस्याऽर्था: स च जीवति।।


अर्थात् धन विश्व को चलाने वाली एकमात्र शक्ति है। जिनके पास धन है, उन्हीं के मित्र तथा संबंधी होते हैं। धनी होने के कारण उन्हें ही वास्तविक पुरूष या महिला माना जाता है। धनी होने से ही उन्हें मूर्ख होने पर भी बुद्धिमान, विद्वान तथा योग्य माना जाता है।



अत्यासन्ना विनाशाय दूरस्था न फलप्रदा:।
सेवितव्यं मध्याभागेन राजा बहिर्गुरू: स्त्रियं:।।


अर्थात् किसी भी आदमी को राजा (अथवा वरिष्ठ अधिकारी), आग तथा स्त्रियों से न तो दूर रहना चाहिए और न ही इनके अधिक पास जाना चाहिए। राजा किसी भी देश का प्रमुख होता है, उससे दूर रहने पर सम्मान, नौकरी तथा धन नहीं मिलता जबकि अधिक पास जाने पर अपमान, कैद या अन्य तरह का डर रहता है। इसी तरह अग्नि से अधिक दूरी होने पर न तो खाना पकाया जा सकता है, न ही कोई अन्य लाभ उठाया जा सकता है। परन्तु अग्नि के नजदीक जाते ही आग से हाथ जल जाता है। इसी तरह स्त्री के अधिक निकट जाने से उसकी ईर्ष्या का तथा अधिक दूर जाने पर उसकी घृणा तथा निरपेक्षता का शिकार होना पड़ता है। इसीलिए इन तीनों से सदैव एक सुरक्षित दूरी बनाकर रखनी चाहिए ताकि व्यक्ति को सदैव फायदा होता रहे।


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